पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३२१

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शिवसिंहसरोज

३० २ शिवसिंहसरोज के . १

थे । ६६८. रामदास बावा, सूरजी के पिता पद हम पर यह हिगई वीबाजन। लै डारे जपदा के आगे से तुम फोरे भाजन ॥ दुरी वात करि देत प्रगट सब नेकृहु आई लाज न । रामदास प्रभु दुरे भवन में आँगन लागी गांजन ॥ १ ॥ ६६६• रहीम कधि (२ ) उनय बिष प्रभु पुडुप तिहारे हम रखिये हमें तो सोभा राघेरी घाइ हैं । तजिहौ हरस तो विरस ते न चारो कलू जहाँ जहाँ हैं। तहाँ दूनी छवि पाइ हैं ।सुरन चढ़ेंगे सुर नरन चढ़ेंगे सीसे सुकधि रहीम हाथ हाथ ही विकाइ हैं । देस में रहेंगे परदेस में रहेंगे कानू भेस में रहेंगे तऊ रावरे कहश हैं ।॥ १ ॥ ६७०. रामप्रसाद अगरवाले लाला तुलसीराम पर पुरवाले भक्तमालःग्रन्थकर्ता के पिता सवैया दीन मलीन औ हीन ही अंग विहंगे परो छिक्ति छीन दुखारी। राघव दीनदयाल कृपाल को देख दुखी करना भइ भारी ॥ गी को गोद में राखि कृपानिधि नैनसरोजन में भरि बारी । बारहिबार सुधारतपस जटायुकी रि जटान ों झारी ॥ १ ॥ ६७१. लाल कवि (१) प्राचीन दारा और औरंग लरे हैं दोऊ दिल्ली वीच एके भाकिं गये। एके मारे गये चाल में । वाजी दगाबाजी करि जीवन न राखत हैं जीवन बचाये ऐसे महापव्ाल में हाथी से उतरि हाड़ा लयो हथियार लै के कहै लाल वीरता विराबें छत्रसाल में । ९ १ वृक्ष ।२ फूल । ३ तुम्हारी । ४ वश ।'५ जटायु ।