पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३२३

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शिवसिंहसरोज

६०४ शिवसिस n A विलोकि के बदत स्यूल पूल हू में ठौर विसराम को न पाइये ॥ लाल कवि फूल फूले रस-रूगन्ध विना स्वाद बिना फत मुख कैसे के लगाइये । तुम ही कहीं न तौल बारी में बलू' जैन कौन प्राप्त राखि राबरे के पास आइये ॥ २ ॥ बंसीवारे प्यारे तेरी पानी प्रवाह बीच तरत सभा की सभा मेमनीर बाकी है। बेहूं की अदा की तान बाँकी ये सुकवि लाल चर थिर ताकी थिरचरता हूं थाकी है । अकेथ कथा की कथा कहाँ तौं बखान तथा भव की विथा को नेक सुनत अथा की है । पण्डितप्रथा की मत्ति थाकी हेल थाप थहै न इहि विधा की थाकी कहन कथा की है ॥ ३ ॥ ६७३, लाल कवि (३ ) बिहारीलाल त्रिपाठी, टिकमापुरवाते दून परो कब को यह गेह है संॉकरों यामें न हूका है । जन बतायो पठायो इहाँ तिन कीनो खरो तुम्हो उपहास है । चाई हौ भागि रही मन कहूँ थाली कहने यामें कौन सुपास है । भीतर कारे भुजंग वर्मी अरु ऊपर चॉक व्रैल को वास है ॥ १ ॥ ऊजरी होय न केहूँ अली तिरछी चितवें हरि साँ अनुरागी । लाज कहें नहीं छूटत दाग दगा दें सुनार बनावत दागी ॥ भेंट भई जपुनातट में तकि दोऊ रही न ट, अनुरागी । गूजरी ठाढ़ी कहै चढ गूजरी जरी भाजन गूजरी लागी ।२ ॥ को डरानी परॉनी को ऊ डरपै नदि मेरो हियो मजबूत है । वायरी सब जाहिर मोहेिं तिहारो अकूत है । ये घर बाहर की । लाऊँ दिखाऊँ मिटाऊँ कलंक इहाँ व्रज एक बड़ो अवधूत है । तोईि तौभाव भवानी को आवत गाँव के लोग लगावत भूत है।३। विधि व गृगनी को रूप अनूप लिख्ो मनोछौरहिलेखनियां। इग कंज से लाल सुधाघर से गुख अंग अनूप अलेखनियाँ॥ १ जaमें भी। २ कहने लायक 1३ सूचंकी रोशनी 1 ४ भागी।५ भघ ।