पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३२६

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शिवसिंहसरोज ३०७ ।

में लालरी गुजैन की उर माल अवीर भयो भरि झोरिन साल री।। साल री होत विलोके बिना नंदनंदन आ रचो व्रज ख्याल री । ख्याल री लोने कहा वरनै मनमोहन नाचत दे करता री ॥ १ ॥ ६७६. लोने कवि (२ ) मोरे मेरे मंझुतर मंजरीन मि िआली गंधनमयी मंद मारुत झकरे लेत नवलक़िसोर लोने कपडत लतिकान लम्पट निपट रस आद अथोरे लेत ॥ गरर्ल की गाँठ से गैठे से ये कड़े से उसे फिरत अयान मान गाँठ गदि छोरे लेत । काम के से चर ऋतुराज के से सहचर चचर करत चंचैरीक चित चोरे लेत ॥ १ ॥ कारे झपारे रतनारे मनियारे सोहैं सहज ठघरे मनमथ मतवाले हैं । लाज भरि भारे भारे चपल अन्यारे तासे साँचे के से हारे प्यारे रूप के उज्यारे हैं ॥ आधी चितवनि ही में किये हैं अधीन हरि टोने से वसीकर की लोने परिहारे हैं । कमल गुरंग मीन खंजन भंवर बृभा की कुॉरि तेरे आंगन वे बारे हैं। ॥ २ ॥ द६८० लक्ष्मण दास रामकृष्ण वासुदेव दामोदर दीनबंधु दयासिन्ड करुनानिधि मोहन बनवारी । मधुसूदन मुरलीधर माधव जगजीवन प्रभु कमलनयन राधापति गोबिंद गिरिधारी ॥ अच्युक्त गोपाल कान्ह चिंतामनि चक्रपानि चिट्ठल भगवन्त विष्णु केसव कंसारी । नामै सव सुखविलास लछमन दासानुदास अज्ञ अल्पबुद्धि चरत सरन परि पुफारी ॥ १ ॥ ६८१. लक्ष्मणसिंह कवि की महरोर मौर महुबर मटौहा मोती लखौरी लाखी लाल लालो लहरदा है । घरंग पीलग पिलंग मुखपट्ट नौशहर १ मुंघची । २ विष । ३ अमर ।