पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३२८

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शिवसिंहसरोज C ६८४, लछिराम कवि, हलपुर के ( शिवसरोज ) एके पग सोहंत विभूति सिंघ याभरन ए पग जेवदार जावत भरे रहें । एके अंग सोहत मुकधि लछिराम फहै ए श्रेग चर्म एके वसन गरे रहें ॥ एजें नैन लाल लाल ज्वाल सर्ण सदैव रहे ए न उज्ज्वल सस कज्जल कर रहें । एकें कर गरि के ड कटितट करे ए सिंघसिंह सेंगर के सिर वे धरे हैं ॥ १ ॥ नित सासु कहै सिमुत्ता सौं भरी नहँदी रिसही सोऊ झलती हैं । चल चाल हैं यार भरे रज सिर पैनी न मेलती हैं । लछिराम है यह बैंस भली वे अली कटु चौस में खेलती हैं । यह बाल बालन के गन में मिलि लालन के संग खेलती हैं।२ ॥ चानन थोष की चोप लखे मुसफानि में यानि सुधा बरसे लगी । त्रुटि गई यह सू धी चितौनि सो नैनन तीछनता सरसे लगी ॥ हैं परिश्रेप के मध्य में चारु उरोजन की गुरुता दरसे लगी। बारनबार लटी कटि है लछिराम कहै वे बवा पर लगी है। है अचरें मचलें न चलै सखि लीन्ही छडें मेहंदी लुने जाल की । चायो अते कुरै न पलें होत फते मिले सिद्धि सी लाल की ॥ देखत हीथ्री पाइ के धाइ कही नहीं जाइ कथा तेहि हाल की । ज्यों हरिनी परन मुहै जाल की याँ गति नाजु भई यदि वाल कीl४ ॥ है नहीं छंत रमें तुमसों में निरंतर भेद कषो सब जी को । कार कौन करे इत को उतै जाइ लै नाइयो मोहन पी को ॥ क्याँ न तुम्हें उचितै लछिराम 8 मारग में दुक्ति होत है फीफो। जो हमको आति लागत नीको तो तुम को अति लागत नीको ॥ ५ ॥ लाज कहें यह काम कि काम है काम कहै यह लाज निगोड़ी । काप कहै करु नाम के कारज लाल फ़है गहैमोहूिँ. न छोड़ी ॥y