पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३३८

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शिवसिंहसरोज ३२१ नाइका दूतीं रस मिति ततु इन्हें करि न्यारेईि भेद बनायो । जन्ष पिता अवरोध निरोध औ दृष्टि स्व रसभास जनायो । विट्टनमोदतरंगिनि श्रीधर था।ॐदखानि बखा)ि बनायो ॥ १ ॥ जा मुखकी दुक्ति दीप ते सौगुनी दामिनी कुंद न केसरि आइ का । काम की खानि सदा मृदु वानि सनेह की छिति में छविछाइका ॥ ग्रंग अनूपम को बरनै सख अंगन प्रीतम को सुखदाइका । मानो रची विधि पूति मोहनी श्रीधर ऐसी सराहत न.इका ॥२॥ ७०२. श्रीधर मुरलीधर कवि (३ ) ( कविघिनोद पगल ) दोहा ‘श्रीधरमुरलीधर सुकवि, मानि महा मन मोद । कवि विनोदमय यह कियो, उत्तम चंदविनोद॥ १ ॥ श्रीधर मुरलीधर कियोनिज मति के अनुमान । कधिविनोद सिंगल सुखद, रासिकन के मन मान ॥२ ॥ ७०३. सूदन कवि दैतिन सौं दिग्गज दुरंदर दाइ दीन्हे दीपति दराज चार घंन के न हैं । मुंडन झपट्ट के उलट्ठत उद गिरि पहृत समुद बल किम्मति विहद हैं ॥ सूदन भनत सिंहसूरज तिहारे द्वार झूमत रहत सदा ऐसे वझक हैं । रद्द करि कज्जल जौंद से समद्दरूप सोहत दुरइ ने परद्दलदलखे हैं ॥ १ ॥ एके-एक सरस अनेक जे निहारे तन भारे लाल भारे स्माम काममतिपाल के चंग लाँ उड़ाया जिन दिल्ली को वजीर भीर मारि बहु मीरन को किये हैं बिहाल ॥ सिंह बदनेस के सपूत याँ सुजानसिंह सिंह की आपटि नख कीन्हे किरवाल के । वे ई पटनेटेमेलि साँगन खखेड़े भूरि भूरि सों लपेटे लेटे भेटे मंहांकाल के ॥ २॥ सेलन धकेला ते पठानपुख १ हाथी । २ बादल । ३ शत्रुद्ल दतनेवाले।