पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३४१

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शिवसिंहसरोज

३२४ शिवसिंहसरोज - : छानदरूप अखिगति हनी लोःय दून्य मंडल श्रनी ॥ साधीरबंस श्रेस्डरथ मर्केडेनि वर्मनी ॥ १ ! ॥ ७०७सुखदेव ( ३ ) मान दिलीपति केरे लिये दिये भालन मा दई यूरिनालहि । दारिद दीन्हो ल’ फि जलाराम निर्भयदान दियो कलिक्राहि ॥ अंतरबेद को देह ई दतिया को वियोग दियो तिहि काल। । राज दियो भगवत महीष को साथ दियो आनो हरमालहि ॥ १ ॥ भानु प्रभा धिन जैसे सरोज सरोज बिना गति ज्यों सैरसी की । ज्य यां रनील निना नि िको रजनील बिना निषि लागत फीकी ॥ चौहैरा ज्य बेिन देख हरा घिन ज्यों छतिया औौ तिया बिन पी की। त् दंत बिना भगवंत लगे सब तरबंद न नीकी ॥ २ ॥ ७०E, सुखदेव सिध (२ ) दौलतपुरबाले मीन की विरता करताई कच्छप की हिये बाघ करिये को कोल ने उदार हैं । । विरह विदाधेि को बती नरसिंह स बामन ों छली बलवा अनुहार हैं ॥ द्विज सौं अजत वलीर बलदेव ही सॉ रम सt दयाल सुखदेव या विचार हैं । मौनता में वc कामकला में कलंकी चाल धारी के उरोज योज दसौ अवतार हैं ॥ १ : मंदर महेंद्र गंधमादन हिमाले सम जि चल जानिये अचल अनुमान ते । भारे कजरारे तैसे दीरष रौतारे मेघमंडल विहंखें जे वे सुंडाखंड ताने ले ॥ कीरति विसात छि तपान श्रीअनू तेरे दान जो आमान का बनत बखाने ले । इसैं कधिपुख जस आाखर खलत उतं पाखर-समेत पील खुले पीलखाने ते ॥ २ ॥ ( रसाव ) तरिकई के खेल छुटे न बनाइ अजाँ न मनोज के बाग लगे । . . . १ ताराव ।२ चंद्रमा । ३ मंदिर।