पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

शिवसिंहूसरोज २५

तरुनपने थायो नहीं सजनी तरुनीन के वैन सुाम लगे ॥ हरि को हैं कहाँ के हैं कौन के हैं ये घखान कक हिंतान लगे । अब तो तिरछे चलि जान लगे दृग कान लगे ललचाने लगे 1१ ॥ दोहा-कानन टूटें घिघन के, जानन के यह ज्ञान । कज आानन की जाति मिड़ि, गज आनन के ध्यान ॥ १ ॥ मदनराउनिदेख को, सादर सीप्त चढ़ाय । मिस्र मुफवि सुखदेव ने, दीन्हो थूथ बनाय ॥ २ ॥ ७०. श्रीडखदेव मिश्र (१) कंपिलायासी ( वृतविचार गिल ) रजत-खभ पर मनहूँ कनैक जंजीर विराजति । विठंद सरदयन मध्य मनहूँ छनछुति-आधि छाजति ॥ मानकुंद कदंब मिलित चंपक प्रसूनतति । मनहूँ मध्य घनसार लसति कुंजुम लकीर आति ॥ हिमगिरिपर मानद् रविकिरन इमि तियवर नरग हैं । सुखदेव सदासिव मुदित मन हिम्मतिसिंह नरिंद करें ।। ( फाजिलनलीप्रकाश ) त्रिभंगी बंद जय जय गननायक सिद्धि विनायक बुद्धि विधायक भयहर) । जय जय खलदाहन घिघनदिगहन पूपफवाहन जनसरन ॥ जय जय गुनआगर सब सुखसागर अवनि उजागर दुबन दो । जय जय जगचंदन कलिमलकन्दन गिरिजानन्दम नमो नमो ॥ १ ॥ दोहा-जेती पर पृथु रथ फियोजेती धरी फनीस । तेती जीती चैमि है, औरंगजेब दिलीस ॥ १ ॥ १ जबानी २ चाँदी । ३ सुवर्ण । ४ उज्ज्वल ।५ बिजली।