पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३४४

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शिवसिंहसरोज ३२७ वभीर ने चीता सम चीनी औ बराह से रुहेले हले करी से चजीरी लोमरीन से पठान, मीर ॥ रोज से फिरोज ओज मौज हरि रूसिन की रीछ से तुरु कक काबुली फरांस वीर तेरे तेज तरनि तरुन को निहार सकै साह के वजीर के मुसीर के देवीर भी' ॥ ३ ॥ चीनी चाषि डारे भूमि डारे भूटियान भट पीसि हारे पेसा सिराज सैन संहरी । मीरखान मारि के सिराइ दीन्हे सिक्खन को हरि के रुहेलन उ हेलन पै हुंकरी ॥ पानी विन कीन्हे हैं जपानी रूसी रोस हरि हसी हराये रूम साम हाम पै वरी । चैंहेिं हिंदुान की पनाहें साहसाहन की जगनिरबहैिं वहैं तेरी हिंदसंकरी ॥ ४ ॥ टीपू को टिमाक मीरखान को दिमाक तुरकान तुमतराक हाँकधक है दरीम की । नाजिम निजामति सुजावृत्ति सुजाइला हिम्मत हवस बीरतई बर्बरीन की i सिक्खन की सेखी कारसाजी निज सेनन की रूसिन की रिस दगाबाजी दर्दन की । ते रे मारतंड तेज अखिल अनूप आगे आव इसकंदरी न ताव वायरीन की ॥ ५ ॥ खान खुराॐान के खिलति पाय खूब खुस काबुल के कामदार कीरति कहा करें । आरप इरानी तुहरानी इस्पहानी खानी तेरी महारानी सर्गेइ भौंहनि चढ़ा करें । हम रूस तूस फिरंगाने औ सकल ड्रेस ते रे धूमधाम के धमाकन सहा करें । ना करे निवाह कहाँ हाँकरे पनाह कहाँ याते नरनाह सब हाजिर हहा करें ।॥ ६ ॥ कहकही काकली कालित कलैकंठन की कंजकली कालिंदी कलोल कहलन में । सेंगर सुकधि ठंड लागती ठिठुरखारी ठाठ सब ठठे गेि लेते टहलन में ॥ फहरें फुहारे फीवि. रही सेज फूलन सर्षों फेन सी फटिक चौतरा के १ संपूर्ण ।२ चमक ।३, एक देश: ४.कोकिला ।