पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३४५

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शिवसिंहसरोज

32 शिवसिंह सरन . n : पहलन में । चाँदनी चमेली चम्षा चार फूलबाग वीच बलिये बटोही मालती के महलन में ॥ ७ ॥ ७१२शिब कधि (१ ) शारसेला बंदीजल, देवनहवाले ( रलिविस मंद मंद चति के आनंद नंदद पास गिया के बंद वार बार तरकत हैं । बतियाँ रसात वर वाल हैंसि सि है ही होत जात लाल पना मरकत हैं ॥ कहे सिंघ कवि ऐसे तक् िके तमासे तनि कौतुक सखीन के दिये सों सरकत हैं । जहाँ जहाँ मग माहैिं। पग देत तहाँ तहाँ रुचर कुभ के से कुंभ ढरकत हैं ॥ १ ॥ ( अलंकारsपण ) गोरी की हथोरी सिठ कधि मेंहदी को बिंदु इंदुती को गन जा के आगे लगे फीको है । अँगुटा सूप छाप मानों ससि आयो आप करकंज के मिलाष पात तजि ही को है ।आगे और पूरी अँगूठा नीलमनिकृत बैो मनों चोष भरो चेहूँवा अली को है । दवि के छला सर्षों कोमलाई 2 ललाई दौरि जीतत चुनी को रंग शोर ब्रिगुनी को है ॥ १ ॥ ( पिंगल ) ताक छद कटि देखि महा कुछ रही तट है । कुचभारन सों न प२ छटि है । त्रिवली मिं मैन कसी थटि है । यह कुंदन की रस बटि है. ॥ १ ॥ ७१३शिव कवि ( २ ) भाट विश्रामी ( रसनिधि ) सापने में आायों सुख सॉवरों सलोनी वह निज अंग आगे जो - S _ १ नीलम । २ बीरबलटी । ३ बच्चा । ४ बहाने । of