पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३४८

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शिवसिंहसरोज चक्या है । पंचम रुचिर पष्ट उत्तर सारंगी कहै कविजन है ज्ञान चित्त सो विचारो है ॥ सप्तम राजीव पुनि धाधन विभाफे सिद्धि मध्ग बरन वर चरचा सुथारो है । कहै सियत हनुमान प्रति जानकी जू आसिरबचन निसि बासर हमारा है ॥ १ ॥ ७१६. शिवलाल डुझे ढौंड़ियाखेरवाले धीर गो ही को सुनि सोर बरही को बीर नाम लै के पी को या पपीहा आमि पौको है । मेघग्रवली को घोर पौन आधली को छहै मार अबली को हाइ मार अवती को है ॥ नाह से पैथी को करें प्राइवो न ठीको कहें देखि अवनीत को रंग लागत न नी को है । शुरै अधजी को मोईि कीन्हे अधजी को यह जानत न जी को भेद रहत नजीको है ॥ १ ॥ रूसन में दूसन में लाल मन पसन में मैन की मसूसन में धीर कैसे • है री । कोकिला की कफन में मैन मन्द झकन में टोंसर की चूकन में फेरि पडिहै री I बेलिन नवेलिन में रंग की सहेलिन में खेलन में केलिन में मनता समें है री । वृंदावनकुंजन में आने के एंजन में भौंरन की गुंजन में भूलि मान है री ॥ २ ॥ धावन को पठाऊँ उतै उनम तौ इहिसर में कहो आघन । गावन एरी लगे मुरखा धुरखा नभमंडल में लगे धावस ॥ छावन जोगी लगे सिवलाल सु भोगी लगे हैं दस दरसावन । ताखन लागो वियोगिनि को तन साठन बारि लगो बरसावन ५३ । काहे को रूसत पावस में इन . वातन तोईि न को सरहैं । पौन लगे लहराती लता तकुंज कर्तव में कर्फी करा हैं ।' बोल सुहावने चात के लगें इंन्वगन धईि घरा हैं । वोति पठाई उत्तै उन मैं उनये नये देखि नये बदरा हैं । ४ है। १ मेर ।२ बोला । ३ बटोही ।४ मोरनी । ५ वीरबहूटी । 5 के