पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३४९

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शिवसिंहसरोज

में १२ शिसिंहसरो h बहु पूलें कबनिकुनन में शुरू भावतो पौन घंटे नित में । बफे जमि कोऊ मयून को गर के घ न आने है। भित में ॥ लेवलाल भयो मनभायो जितो शव औौर कर तितो हित में। बर सात में घर आइ गये बड़े भाग भटू बरसाइत में ॥ ५ ॥ ७२०. शिवराज कधि मंगल होत कहै सिवराज कहीं केहि के दुख होत घिसे खो । कौन सभा माँ वैठि न बोहत, को नईि जानत चित्त रेखो ॥ कौन निसा ससि को न उदोह्न भो का लखिके विरही दुख पेखो। वाँझ को पूत विना खान छुडू निति में सक्ति न देखो १॥ ७२१. शिवदीन कव एक में श्रीपति गौरीस के मिलाप का न पच्छि राज पीढि चढ़ि पहुँचे छिनक में है सिवदीन सिम गि उठे पेखत ही गरुड़ विो।ि भाजे ०ल हुते लंक में ॥ कीन्ही ईस चाम थ्रोट ससि सि ा ढारो जियो बाघ धागो भाmयो पभ सर्स क में । नगन विल कि लज। उमा रमार्फत से पताठ फुट के लगायो हरि अंत में 1१॥ ७२२, शंभु (१ ) राज़ा शंभुनाथसिंह सोलंकी कौहर कiल ज दल विदुष का इतनी जु बैंक में . कोति है। रोचन रोरी रची मेहंदी प्रैप सं कहै .तता सम पोति हैं ॥ पाँष धरे हरे शुरसो तिहि में महि-पायल की घनी जोति है । वथ -तीन लौं चारिहूँ और ते चाँदनी चूनरी के रेंग होति है 1१ देख चहें ।पेय की कुछ पं क्यों न करें जिय क लिखी चाहूति संधु कहै मन में बतियाँ पुख ते पुनि जाति न भाखी ॥ ब्वेि को कर भु वे नहिं जीभि ने ज़ाइ नहींनद नाखी । लाज औौ काम दुहून बहू बलि योज दुराबें प्रजा करिराखी ॥२॥ S ! १ उदय ।२ सर्ष 1 ३ दो रजकी मातहत रि आया ।