पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३५३

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शिवसिंहसरोज

शिसिंहसरोन ५ - h एक सर्वे गिरिराज की नन्दिनि आई नन्हाइ. क, लरसी ते । भखर भाल दिये दल कल को ग्रानन साँ छवि की छवि जीते । ॥ सो हटि लेवे को गुड फसर तहाँ गननायक आाइ गंभीते । चाहि के चोप सी दौरि मनोहर लेत सुधा आहिराज फंसीते 1१। ( ह-जरी ) सिंह के सिंह के अंत में जो गुरु होर्ति तौ भूलेलू व्याह न की । पेप के सूरज होईि तौ कीजिये भापत पण्डित सो सुनि लीजें ॥ गोदावरी अरु गद् के बीच में मेष हू के रवि में न कहते । पiएंड़त एक कहै गुन मण्डित जी में विचारि जनौ मति दीपे - ॥ २। । ७२६. शम्भुनाथ मिश्र (५ ) सातनपुरवावाले ( बैसवंश:वली ) दोहा-गहरार आरु परगही, पुनि भालेसुलतान । तिलकचन्द नरनाह के, कृत्रिम छत्री जान ॥ १ ॥ लोथ विभ में कीनचित्र ॥ बैसवंत । वे मसंस ॥ १ ।॥ तासु पुत्र रास्ता सुजानियो महाबली । और देश छोंईि भक्ति के महेस की भली ॥ जीतियो अनेक स जे बखानि जात ना । तासु पुत्र भो बलिष्ठ जासु नाम सातना ॥ सातना नरेस के तिलोक चन्द जानिये । जासु दान मान एक जीह क्यों बखानिये ॥ २ । ॥ ७२७. शम्भुनाथ मिश्र ( ई ) गंज मुरादवाददाले । देवन की देवी दाँदि सारे मंड कैटभ को मईिप ॥ारे कीन्ही नेक नहीं दी है । करी ना आवाएँ मातु सड पे सवार है के दैत्यन को १ प्रकाशमान ।२ विदुर । ३.चंद्रमा है नक़ली । ५ दादफ़र्याद। ६ देरी। ५