पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३५६

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शिवासिंहूसरोज नभलोक नाकलोक थोक थोक काँपे हरि देखे मुसयात ही । को पस्यो हालिन में लालो लोकपालिन में चालो पस्यो चलिन में चिउरा चबात ही ॥ १ ॥ दादुर चातक मोर करो किन सोर सुहावन के भरु है । नाह तेही सोई पायो सखी मोहिं भाग सोहाग को बरु है ॥ जानि सिरोममि साहिजहाँ ढिग बैठो महाविरहा हरु है । उपल चमको गरजो बरसो घन) पास पिया तौ कहा ढरु है ।।२।॥ ७३६. शंकर कवि वाटिका चिठारी नाभिसार को सिधारी भारी संकर धंधेरी में जेरी को सो कंद है । भादौं को विषम मेह दीप सी दुरै न देह नागर के नेह को सनैक दृष्टि बंद है ॥ सिवा जान्यो नागरि पि सचिनि कमच्छा जान्यो मृगन कनानिधि औ छली जान्यो बंद है । त्रिड जन्ो बन घोर या पष्ट मोर जान्यो भोर जाम्यो चोरन चोर जान्यो चंद है ॥ १ ॥ ७३७सिंह कवि हाल ही हाल में मान भय षि पौदि रहे पलिका पट तानि है । मान उड़ाने को वैटी विभूति काहू कहै धौं पिया मुख मानि है । सिंह उरोज दें पाँ न पौहेि के काम के वान लगें तष जानि है । । पीतम नेह स अंक भयो लशिग ध्यारी गरे रि के पुसंकानि है 1१॥ आदि प्रजाद विचारे बिना सिर सौंपत भार महा आति तापे । गाड़र कि सान करें यह बात कहो कहि ज़ात है का पै ॥ सिंह काग सुहावन होइ तो काहे को कोल मरालहि थाये। काम परे पछिताहिंगे वे जे गचंद को भार वर्ग गदहा मै ॥ २॥ ७३८, संगम कवि । समै को न जाने सीख काह की न मांगें रंरि कठिन को ठा मै १ उपदेश । २ झगड़ा ।