पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३६१

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शिवसिंहसरोज

४४ शिसिंहसरोन कुमुद घन अधखुले अधउन चंद देखि ग्रासीसी हैं गईं ॥ २ । ॥ ७८सवितादत बाबू बीच में शिविर को सहकार सर्दी की सौवें गीधे ”। हेरति ज्यों हरियानन ओर त्यों छतें फिरें उत होत सनीधे ॥ रखे इसें न रहें सविता ग्रह्त त्रिलोकनि लालच बीघे । याiधि नैन नितंविनि के ठहरात न ल।ज औ गें काम समीथे। । १ ॥ मुखों लगत मुख सह न करत पुख ला काम समता बग्रुप में लगी रहै । रति के विस्ताल उर ग्रंतर वसाँवे पै माल ना करत अंण प्रेम के पगी रहै ॥ केलि की कथान कहे उतर न देति उर रूखे नैन यूंदे हौस सुनै की जगी रहै । । c।रे को जगह जानि छो है पट तानि तानि लगी रहै उर जौ लौं पता लगी रहै । ॥ २ ॥ ७२६, धर कांचे • n छपे आरष चंद इत दिये उतं ससि पूरन सिष्थे । 2 जटा मवि गैग उ पुछताइल तिये ॥ इत त्रिशूल त्रय नयन उसे दी रोरी की । इत युगयाभरन उर्ता बेनी गौरी की ॥ साधर टुकठिन बहु सिद्मा सिब सकल सभा आनंद दिये । सवैगी को ध्यान कर अखंगी आासन किये ॥ १ ॥ ७५० डर कवि काके गये वर्लोन पलटेि आये बरौन 2 मेरो कड ब्स न रसन उर लागे हों । महें तिरछी हैं कवि सुन्दर पुजाम सोई कलू अर सोहैं गोद जाके रस पागे हौ । ॥ परख में पाँथ हुते परंसों में पाँय गतेिं परसों ये पायं निसि जा के अनुरागे हौ.। कौन बनिता १ आधा सिर दर्द करने की बीमारी ।२ आम । ३ कमल । वे खुशबू । ५ फंसे । ६भीतर। ७ वस। ८ कपड़े । ६ छूती हूं। . \" - n C