पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३६६

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शिवासिंह सरोज में काम और सिकोरन नाक न लागत ना को नायक नीको। iहै गोरी गुमानिनि ग्वारि गरि गने नहिं रूप रतीक रती को ॥ ४। यह गडू रे हरि के पदपंकज तू परिपू ' सिखाधन है रे । यह ने जग झ है देख चिढ़ हरिनाम है साँचो सोई, कढ रे ॥ कहून हूँ की बात स कड़े कोऊ सो सह रे ॥ रे प सg दन तां स सा कर्वी बनता रघुनाथ निरंतर को गढ़ रे IIहै। ७५६सिरताज कवि, बरसानेवाले मानती न मालिनी कहे ते कौन तेरी बात कहे ते लतानन की कोई झकझोरती । कई iसरताज फुलवारी की बहार देखि करि अनुराग अनमोलो पुख सरत ।फूला रे री गुलाब गुलदाउदी गह नृदार खेला औी चमेलिन की वेलिन विथोरती । क।रन कहा है। इन नारिन को बाग वीच नाहक प्रसू न ये अनारन के तोरती ॥१॥ में करि हरि मृग मंजीर कलानिधि आदि विम्वाफर । चलन लंक दृग उरज वदन बेनी अधरार ॥ मत्त तरुन बन कनक पूनें परिपक रुचिर दुति | सुरस डी सिलु उी दोष घिन आसित वेले उति ॥ सिरताज सरोष सभीत विन वैध सरद नष।नकट जल। ड वाल गात ऐसे निरखि कस न होइ लालन विकल ॥ २॥ ७६०सुमेर कवि करत कलोल कीर कोकिल कपोत केफी चन्द की बधाई वार्न जाने जाने घनयुनि । सुकधि सुमेर मीन मृगज मराल मन मुदित मधुप न्योते कोकिला सफल मुनि 7 केहरि कुंदूरी कीर कदली कहा कमल फूले सौतिन सजे हैं तन चीर चारु चुनि चुनि । पट १ स्वर्ग ।२ रति, काम की स्त्री ।३ अरोरती=लूटती । ४ केला ।