पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३६८

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शिवसिंह सरोज ३५१ मारत तिरछी कोर मनो हिय हनत कारी ॥ कहि पठान सुलतान छफ नर देख़ि तमासा । वाको सहज सुभाष औौर को बुधिघल नासा ॥ २ ॥ ७६३, सहजराम बनिया, (१ ) तेपुर ( रामायण ) चाई सीता रल्लनक भल कटोरा । भगन भय उर भूपन कोरा ॥ भूपजरा रिपु सल्य उमा-सी । तेहि छत बहुरि रमपति धाँसी ।1१॥ ७६४चुलतान कवि (२ ) तुम चाले की गाते चलाशती हों मुनि प्रति ही तन छीजतु है। छन नेफडु न्यारी जो होति कहूँ थल मीनन की गति लीज है । जब ताँ पुल तान न आने घरें तय लों तौ विद नहिं कीजतु है। वदि पीतम की अनुहारि सखी ननदीपुख देख के जीज है ॥१ ॥ ७६५. उचलात कवि दसरथ के वे खरे बेटे धनुष करे सर टेटे । गोरे लैोटे उर व नेटे जरी लपेटे . सिर फेटे ॥ नैना कजेरेटे रन दुलहेटे रमा पलेटे चरनेटे । सुखलाल समेटे चारों बेटे से करि भेंटे सटे ॥ १ ॥ ७६६. शिवनाथ सुक्कुलमकरंदपुरवाले देवकीनंदन के भाई पति-प्रीति मिया विपरीत रची रति-रंगतरंग बहारन को । नवें बेग ते वेसरि को मुशता चित वित्त हगे दृग सारन को ॥ वह नाथ के सौंहें न डीठ क गड़िजाति है नीठि निहारन को। रति कृजित गान की तान मनो निहरे ससि लेत है तारन को।।१॥ ७६७सुजान कवि है। आपन ही नैनन सों नैनन मिलाइ लेत सैनन चलाई हरि लीन्हें 4 - - - बौना ।