पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३७७

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शिवसिंहसरोज

शिसिंह जड़ कहूं नह काटिये, कक्षा की पन वरि । पाsर रिन की हर कटी, भलो एक निराशि ॥ ३ ॥ भलो होत न िमारिखो, काहू को जग गाहैिं । भलो मारियो क्रोध को, ता राम नररिए नहिं ॥ ४। ॥ खुर्ग मगियो जगत ते; जाते ो अपमान । छमा माँरीि सो इस ते, तो ए करि झा ॥ ५ ॥ ७६ ७. श्यामलाल आदि, कोठजहाबादी पgका सैंगय ह बाँधों हलवाइन को चासनी न चाटि जड़ें जौनों सियचेंगी । यूफेिंका गाइ के छुटाई डारों भाठन को चूहे अरु ही कहाँ से नियरॉयगी ॥ चार दिसान ने बयारिन को बन्द कीलें उड़ते न पालें जों में तो तो ठहरागी | माचिन को मारि डा चींटिन बार फारी चींटी दई मारी क्या हमारी खाँड़ खागी ॥ १ ॥ वीसवीं एरित हम वटे हैं गेंदौरे सुनि बड़े बड़े बैरिन की छाती फटि जायगी । नाइनि सु बारिनि परहैसिनि - रोहितानी छोड़े पाय खोटी खरी मोंस कहि जायगी ॥ यू हलवाई चलि आई है हमारे यही डेढ़ टाँक खरड़ चहै छोरों लग जायगी। फिरकी से छोटे और दीमक से जोटे और कागद से मट बमैं बात रईि जा घगी ॥ १ ॥ ७६८, सीताराम त्रिपाठी पटनावाले विधि को विवेक से वनाउ विवधान करि केसव कलेस नास- .कर रनधीर है । रुद्ररूप संघृति-संहारक ड्रेस आदि तपन तत सीत सीतकर बीर है ॥ विश्न को विदारन विनायक के बाँटे पो सीताराम सरन सदासर समीर है । धारिबो धरा को जैसे धीर है। घरेसजी को तरिवो तरंगिनी तिहारी तंदवीर है । ॥ १ ॥

। थे । 4 x १ ठंढी होंगी । २ मिट्टी । ३ नज़दीक आयेंगी । ४ रघुटि ।