पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३८१

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शिवसिंहसरोज

३६४ शिवसिंहसरोज में १ ' ८०६. हिरदेश कवि, झाँसवाले (गारनवरल ) चंदन चहल चित्र महल हिदेस मेौहे रस बतियान सों प्रमोद सखियान में। खासे खस फरस फुहारे फुही फैल फैल फैल भर सीतल समीर छतियाभ में ॥ गोरे गात सो गरे गजरे चमेलिन के गुहे वर सुघर सहेली प्रति स्थान में 1 गोद ते उरोन कर परस गुलाव-जल छिरकत लाड़िली लली की खियान में ॥ १ ॥ ८०७हरिनाथ कवि, असनीवाले, नरहरिजू के पुत्र बाजपेई वाज एम पाँड़े पच्छिराज सम हंससे त्रिवेदी जैन सोहैं । वड़ी गाथ के 1 जूही सम सुकुल मयूर से तिवारी भारी जुरी सम भिसिर नवैया नहीं माथ के ॥ नीलकंठ दीच्छित अवस्थी हैं च कोर चारु चक्रबक दुवे गुरू सुख सुभ साथ के । एते द्विज जाने रंगरंग के मैं थाने देदेस में बखने चिरीखाने हरिनाथ के 1१। छपं हाटेक कंज मयंद चन्द दाड़ि, गयद गति। छदन अरुन ऐंड़त एरू पक्की ड अति । मिति सुहागल कुंधित सरद दस्य जीरजुत। तपत छपत क़स तरुन गात ततकाल रोस हुत ॥ हरिनाथ ओप भीषम सिसिर अमरलोक लाली खुलत। यह रूप देखि तन सुन्दरी जद ब्रह्म विष्णु मुनि मन ढलत ॥ २॥ ८०८. हरिहर कवि केला कालकूट के तचाई तेज बाड़ा के सेप्स दें त धमiने प्रचंड ताय चढी है । आई आासमान ते कि भासमान पाई सान प्रजें की बुझाई पानी पैनी धार कढ़ी है ॥ हरिहर हर को त्रिशूल हरि १ आनंद। २ सुवर्ग । ३ अनार । ४ दुबले । ९ -