पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३८४

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शिसिंहसरोज ३६७ बामन द्वार गये बलि के सवं भूमि दई अरु पीठि नपाई ॥ लाल कथा हरिचंदडु की सुनी सर्वत दीन न बात चलाई। रखियो तो कठिनाई नहीं रस रखि विदा करिचो कठिनाई ॥ १ ॥ ८१४. हठी कवि, ब्रजवासी ( राधाशतक ) घनफरस फैली मनिन मछपे तैसे जरी को वितान तेज तरनि त परें । पाँघड़े विछौना विछे मोतिन की कोरखारे चारों ओर (र ज्णु प्रभा भराभरी पाँ ॥ हीरन तखत वैटी राधे महारानी ठी रम्भा रति रूप गिरि धसक धरा परें । छूटी मुखचंद चारु किरमैं कतरें बाँधि है है चन्द्रमएडल f छवि के छरा पर्ग I। मखमल माखन से इन्दु की मर्यापन से नूतन तमालपत्र आभ आभरन हैं । गुल से गुलाल से गुलाब जर्धा पाठकैसे जाबैंक प्रबल लाल सोभा के धरन हैं 1 उमापति रमापति जमापति श्रा। जाम सेवत रहत चार फल के फरन हैं । पंकजबरन रवि-छवि के हरन हटें सुख के करन राधे रावरे चरन हैं । ॥ २ ॥ , ऋषि 3 वेद य8 सस सहित, निर्मल मधु को पाइ । माधो तृतिया भूगु निरखि, रच्यो ग्रंथ सुखदाइ ॥ १ ॥ ८१५. हनुमान कवि, बनारसी दीपक-सो ज्वलित प्रताप रामचन्द्र तेरो जसु छवि छाई अंड अमल उजास की । कवि हनुमान कच्छ चरन फनिंद दंड भाजन महा है ही जगत निवास की ॥ उद्ध सनेह वाती सुभग हिरन्य सैल तेज है अखंड मारतंड तम नास की । जरि डा थो आासु सत्रु संमर हता कॉज जरत परत सोई कालिमा १ किरन ।२ फूल ।३ दुपहरिया का फूल ४ अग्नि ।५ महावर । ६ हूँगा ।७ समुद्र