पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३८५

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शिवसिंहसरोज

शिवासिंदसरोज

। घकास की ॥ १ ॥ पाप संलहा के पाकसासन सता के सम हतु । करता के भारहरन धरा के हैं । देन मनसा के सैलना के जलजा के हाल जा ध्यान छा कटे संकट न का के हैं । कंत कमला के लोक पालै बल जाके बेस वास करैयाहनुमान जियरा के हैं । ओज सविता के गुन कलपलता के महा मुकुतफ्ता पाँय जनता के हैं ॥ २ ॥ .८१६हनुमंत कवि राजे ब्रिजराज पद भूपित विभूतिमान पुक् िदेत दीनन को वास वर भायो है । बदित सुदेवदेव अधिक पुनीत रीत हुतकनेही चार मत उर लायो है ॥ कलानिवास वास वरमैं अनंत संत भ हनुमंत तामु सुजस सुहायो है । को कहै इन्दु सिव सिंधु रवि विएजू को हो तो धूप मान परतागुन गाो है ॥ १ ॥ धवन भेज सखी बहि देस बसें जिहि देख पिया मन भावन । भावन भोर या लुक लगी तन बीच लगी जियरा झरसावन ॥ सावन में न भयो हनुमंत दो मिलि झलि मलारहि गावन । गावन मोहैिं सुहात नहीं बदरा बदराह लगे जुरि धावन ॥ २ ॥ ८१७ होलर कचि, होलपुर के छप्प माथुर ज़ग उजियार गौड़गालिब हुन नागर । उनाये सख सेन नाग मुनि श्र भटनागर ॥ .ऐठाने आमिष्ठ प्रगट हु ‘जे जां) । बालमीफ़ कलि श्रेष्ठ सदा चूरा बखाने । ॥ कहि राय होल श्रीवास्तव दिपतेिं राजदरबार बंर। गो-हेत विध रच्यों में बारह कायस्थ घर ॥ १ । ॥ १ अग्नि । २ लक्ष्मी कां घर । ३ दूत।