पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/५६

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शिवसिंहसरोज

शिवसिंहसरोज Iदे तक तुम देखति ह यह कोरे तिहारी कहाँ तौं स३लि हैं । कान्हर को प्रभाव यहै उनको हम हाथन ही पर कैलि हैं। राधेनू गानो भलो कि वुरो कॅखिमीचनो संग तिहारे न खेलि हैं ।१॥ अवनि अकास के प्रकासित बनाये पला दिसन की जोति कान्ह ज अति उरो भो । मारुत की दंडिंका बनई सुघरई घर चतुर सुनार चतुरानन सु ख्रो भो ॥ तो मैं सुलु राधे या अनोखी तौल तौली गई गयो वह ऊँचे यह नीचे यानि मैरो भो । तारागम जदषि चढ़ाइ सदाइ दीन्हें तदापि न चंद मुखचंद भर पूरा भो ॥ २ ॥ ७३. कमलनयन कधि आजु कॉलमैन मोसों ऐसी होड़ परी औौर कहा सचिन की बातें अक्रेखिये । दरपन लै कान्ह कहो मेरे बड़े नैन हैं । तो हूँ को प्यारे के ऐसे ही तेखिये ॥ दीरघ विसाल मेरी राधा कौंरिजू के कही ख्या चलि देखिए जू प न विसेखिये । आये हैं। रावी हाहा प्यारी बलि गई तोपें एकबार ऑाँखिन सh Jखि मापि देखिये ॥ १ ॥ मने कीजो मेरी थाली जिय में न ऐसी आमैं हम तो हिनू सो बात हित की बताय हैं । जानत हो पाँयन साँ मापे हैं तीनो लोक याही के भरम भूले भरम अँवाय हैं । दई की सँवारी वृषभानु की कुमारी तारें सरवर किये हरि पाछे पछिताय हैं । राधे चंदपुखी वे कनौड़े हैं कमलनैन ऑाँखिन साँ खि मापि कैसे जीति जाय हैं ॥ २ ॥ ७४. काशीनाथ कवि जोरत न नैन मुख वोलत न वैन अघ लागे दुख दैन ढिग होंही निवसत हो । ऐसी चतुराई निरइ कहा काशीनाथ मेरे हिय जारन को और तें हँसत हो ॥ हम तरस्यो करें ‘तुम्हें तो है तरस नहीं - n ए . १ ब्रह्मा । २ भारी ।३ सच।