पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/५९

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शिवसिंहसरोज

शिवसिंहसरोज कविराम विप होत सुधा घर नारि सती पति सौं चित फाटत । भा विधना प्रतिकूल ज तव ऊँट चद्दे पर कुर काटत ॥ २ ॥ ८०. कालीदीन कवि देखि चंपेड-खंड को प्रचंड उग्र बोली सिवा ग्रयल अरच्छन की रच्छ पद्ध पाती ठों । कहै कालीदीन देव कोतु विलोको नभ चारों दिग दांतेवे को ग्राहु दुराताली हों। ॥ फोरि ढाबें वसुधा महरि डालें मेरगिरि कालचक्र तोरि ढारों आयु में बहाल हों। काली करों अरिल अति विकराली करों जंगभूमि लाली करों तों में महाकाली हाँ ॥ १ ॥ ८१ कल्याण कवि नैन जग राते माते मेममय देखियत यानन जम्हात टौर ठोंरन खगात है । कज कुटिल लागे अधरनि चोर कोर सकुच सरम नहीं सोने दें, बात है । ॥ केसव कल्यान प्रानपति जानि पाये जाहु नेकु पहिचानी सब हो तिहारी बात है । डीलि बीलि बत्तियाँ न बैल वर वालों क कर के छिपाये ते छपाकर छिपात है ॥ १ । ॥ ८२, कमाल कथेि। राम के नाम सर्दी काम पूरन भयो लच्छमन नाम ते लच्छ पायो । कृष्ण के नाम स वारि से पार में विष्णु के नाम विसराम आयो । आइ जग वीच भगवंतकी भगाति कीन्ही और सघ काँरि जंजाल छायो। कहत कस्माल कब्वीर का बालका निरखि नरसिंह पहलाद गाघो।१॥ ८३. क।निधि कवि प्राचीन गावत गोधन की बुनि लै सु कलानिधि मैनकलान वतावत । तावत है तन मो तरुनी जब भावभरी भृकुटीन नचावत ॥ १ तभाशा।