पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/६०

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शिवसिंहसरोज

शिवसिंहसरोज ४१ चावत शोक संवै ज लोगन में मनमोहन मो हित आधत । आवत हैं तरसावत हैं न लगावत अंक कलंक लगवत ॥ १ ॥ ब८४. कुलपति मिश्र मेरे युद्ध क्षुद्ध लखि आयुध स न कोऊ मानुष की कहा है। गति दानव न देव की । अर्जुन गराज जिन आइ सनमुख दूर नू न जानें गति इन वानन के भेब की ॥ कुटिल विलोकानि ते होत लोक लोक खएड जाको कर प्रगट धरीधरन टेव की भीषम हो आयाँ आाद भीषम मचाइ रन खगवैल वैजहि बड़ा वासुदेवकी।१॥ ८५ कारबेग फ़क़ीर माफ़ किया मुलुक मताहदीविभीषन को कही थी ज़धान कुरबान ये करार की । बैठिये को ताइफ़ तखत दे तखत दिया दौलत बढ़ाई थी जुनारद्दार यार की ॥ तब् क्या कहा था अब सर्फ़राज़ आप हुए जघ की अरज सुनी चिड़ीमार ख़्वार की कारे के करार माहें क् जी दिलदार हुए एरे नंदलाल क्यों हमारी बार वैर की ॥ १ ॥ ८६. केहरी कवि इसैं साहिज़ादे जू बनाये सार मोरचनि उतै कोट भीतर दवाये दल है रखो । हरि सुकवि कहै और प्रारे सैथीन तहाँ अबतरन तमासे आानि ब्वे रपो ॥ औचक गलीन में गनीम दल गाजि उठगे मुंड गजराजन के मद आगे रह्यो । समर फेंहारे भट भेजें रबि मंडल को मंडल परीक नकुंडल सो है रहो ॥ १ ॥ ८७, कृष्णसिह कवि । कानन समीर बसें भृकुटीअपाइ आने आसन अर्जिन मृगशंजिन अनाधा के आरुन विभोगे को विसद विभूति भंग त्यागे नींद १ पहाड़ । २ भयानक ।.३ तलवार के ज़ोर से । वे यशोपवीत- धारी) मित्र अर्थात् डदामा। ५विलंब ।६शत्रुदल ।