पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/६४

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शिवसिंहसरोज

४५ । शिवसिंहसरोज जानि वात मोको न सुझाई है । एकमत कहे यामें मेघ भलो प्राची दिति रहिये कृपाल गेह नवौ निधि पाई है ॥ १ ॥ ६८. कमल कवि दानव देव नाग नर किनर गन गंभ्रय जोगी जड़ बंटी । कीटपतंग पछि प8 जंगम स्थावर गुरु चेला अरु चंटी। ॥ यदिमंडलमंडली कमच कहि जिहि नव खंड विस्ख धर घटी। तिर्वीपुर तिथि तिहूँ लोक तिहूँपुर को को मरि नभयो मिलि मंदी'।१॥ ई. किशोर पर कवि संची सिर ढोरे चौंर उर्वसी उड़ाने भौंर सावित्री सेवें चरन महिी महेस की । वरुन धनेस राजराज उडराज कन्या गांध किन्नरी कुमारी सेशे सेस की ॥ नवनि नरेसन की दम घु दामिन सी ठाढ़ी आसपास पेस आइ देसवैस की कन्या तिहूं लोकन की तिनमें किसोर सूर अभुत महरानी बैठी राजमिथिलेस की ॥ १॥ सुंदर रूप त्रिया मेन जानकी लोक औ वेद की मेड़ न मेटी। औधपुरी सुख संपति साँ रजधानी सदा लछना सों लपेटी ॥ सूरकिसोर बनाय विरंचि सनेह की बात न जात है मेटी। कोटिक जो सुख है ससुरारि तौ वाप को भौन न भूलत बेटी 1२॥ १००, कान्हरदास पद श्रीविट्ठलनाथजू के चरन सरन । श्रीवल्लभनंदनं कलकल्षखंडन परमें पुरुष त्रयतापहरने ॥ सकलदुखदारो भवसिंधुतारने जनहितलीलादेहधरन । कान्हरदास प्रड सत्र सुखसागर झतले दृढ़ भक्ति भावकरन ॥ १ ॥ १०१० काशीराम कवि हिलिमिति की मेल दीनो है विवेक विषि कद काशीराम याते १ पूर्व दिशा ।२ मिट्टी के इंद्राणी ,४ रानी। ५ । ६ पाप ।