पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/६५

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शिवसिंहसरोज

४६ शिवसिंहसरोज जग चाहियतु है। जो न मिले पर ’ दाiर तक फिरि जाइ कोऊ जाको हियो बोतनि हुए बोल दाहियतु है ॥ सुनो हो प्रवीन नर दीनता न भाषि जाने याही ते सुदेसान चिदेस गाहियल है । खान चाहिये न एतो पान चाहिये न एों दान चाहिये न जेतो मान चाहिय है।१। कुछ का गला में एक नवल अकेली बाल देखी ब्रजराज ऐसी पाइये न चाहे ते । दरे गही वह उन चाइवे की बाद दीन्ही साँची करि मानिबी जू नेह के निवाहे ते॥ कहें कवि कासीम पुता प भानु की आति चतुराई चतुराई चित साहे से हा हा कर हारे। पतियाने नहीं पाँय परे छाती के हुये ते कटु छाँईि दीन्ही काहे ते ॥ २ ॥ गाढ़े गढ़ ढाहत रहत नदि ठाठे ने दिग्गज दुत मद डारत चुकाई के ॥ करचोली कसि कि निकसि निजामतवाँ थावत रकाब जब बजोरी पाइ के ॥ थरमि के चर्वी कोन कासीराम भौन भौन भाजौं भाजो इहै होत राना राव राइ के । लंक ते केस के पताल हू ते सेस के सुमेर ते सुरेस के मिलें वकील a . आइ के ॥ है । १२कामताप्रसाद (१ ) कुंदन से झलकें खलैंक बस करें मानो पल बुला लेत सहित दगा से हैं 1 नवल नवीन मन छीन लेत मनसिज पीन जुब अरे ते पियारे रखूष खासे हैं ॥ धीरघर बासे में नकासे ने उम भरे काम रंग रासे सुधि जोहत प्रभां से हैं । कामताप्रसाद उर प्यारी के उराज सोहें कोक कोकनद गुमटा से छनदा से हैं। १ ॥ आनन अनूप छवि छलक छटा सी होति ज्योति जोलह निर्दे निसिकर चंद नीको है । देखत चकोर से न पुरत मुनीसमन ममता १ ज्योढ़ी पर ।२ प्रतिनिधि । ३ दुनिया । वे चाँदनी।