पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/६८

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शिवसिंहसरोज

शिसिंहसरो ४है' फूल शनि मंदिर बनायो धूम संाला के । ताहि देखि कलीराम मण्डल अछूतसिंह लाइ के भभूत वैटी पीठि मृगछाला के ॥२॥ १०७कृष्णदास कंचन मनि मरकत रस ओपी। नंदपुघन के संगम सुख वर अधिक विराजत गोपी ॥ करत विधाता गिरिधर पिय हित सुरतध्वजा मुख रोपी । बदनकांति के सुनि री भामिनि सघन चंदशी लेपी ॥ प्राननांथ के चित चोरन को भौंहभुजंगिनि कोपी ।, कृष्णदास स्वामी बस कीने मेमपुंज की चोपी ॥ १ ॥ १०८केशवदास ) : भोर भये आये हो ललन नीकी भतियाँ। जाबैंक के उर चीन्ह नीलपट प्यारी दीने नयन आलसंभीने जागे सब रतियाँ॥ लुटी ग्रीवा वनदाम नखछत अभिराम कैसे के दुरत श्याम डगमगी गतियाँ। केसघदास प्रभु नंदमुवन काहे लजात भले -गात जानी सब यतियाँ ॥ १ ॥ १०. खानखाना नवाब रहीम छाप ( सदनष्कग्रन्थे ) कलित ललित माला वा जज्ञाहिर जड़ा था । । चपल चखनवाला चाँदनी में खड़ा था। कटितट विच मेला पीत सेला नवेला । अ िवन अलबेला यार मेरा अफेल ॥ १ ॥ दोहा-आये राम रहीम कधि, किये जती को भेस . जाको जो पंत पराति है, सो कटती तुष देस ॥ १॥ १ शोभा ।२ महावर ।