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शिवसिंहसरोज

फरजी साह न है सके, गंति टेढ़ी - तासीर ।
रहिमन सीधी चाल ते) प्यादो होत वजीर ॥ ८ ॥
करत निपुनई गुन विना, रहिमन निपुन हब्बर ।
मानो टेरेत विष्प चह्नि, यईि प्रकार हम यूर ॥ है ।
रहिमन खोटे सैंग में, साधु वाँचते नाहैिं ।
नैना bना करत हैं, उरज उमेठे जाईि ॥ १० ॥
कहि रहीम गति दीप की कुल कपूत की सोइ ।
वारे उजियारो करें, बड़े धंधेरो होइ ॥ ११

११०खुमान भाट चरखारी के ( लक्ष्मणशतक ) हनुमंत की लपेट दै लंगूर की झपेट दल दुष्ट को दपेट चर पेट पेट चाखलान । वजै नख चटाचट्ट दंत होंत खटाखट्ट गिरे सैन घटापट्ट फूटी फूटी पार जान ॥ कवि कूह किलकार खलजूह झिलकार परी पेट पिलकार रुटै राकसनिदान तहँ तेज को कुमार करि कोप बेसुमार वीर लखन कुंवर झुकि झारी किरपान ॥ १ ॥ प्यारो सीता राम को उज्यारो रघुवंस हू को अनियारो जन पैज़ महारूरी रन को । रघुकुलमंडल प्रचंड बरिखंड भुजदंडन उमंडन सों खंडन खलन को॥ मान कवि रघु के अपच्छ पच्छ लछमन अच्छ मन लच्छ मन कृच्छ दीन जनको । सिंहन को सर्भ गर्ववंतन को गर्व गंजि अर्भ अवधेश को सगर्व शत्रुहन को ॥ २ ॥ भूप दसरथ को नवेलो अलवेलो रन रेलो रूप झेलो दल राकसनिकर को । मान कवि कीरति उमंडी खल खंडी चंडीपति सो घपंडी कुलकंदी दिनकर को ।। इन्द्रगज मंजन को भंजन प्रभंजतनै ताको मनरंजन निरं– जन भरन को । रामगुनज्ञाता मनवांछित को दाता हरिदासन को त्राता धन्य भ्राता रघुवर को ।।३॥ हरिदय हैवर सो हंस सो हयानन


१ बालने से और बचपन में । २ बुझने से और बढ़ने से।