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शिवसिंहसरोज


_ सो हरिनी हरा सौ हिरन्याच्छ हंस हर सो । हिम सो हराचल सो हर सो हृरीस्वर सो हपीकेहर्स्य सो हरो सो होमधर सो ॥ मान कवि हंस कलहंस सो सुजस हरिदासन के हिये सो हली सो हिमकर सो । हीरक सो हार सो हनुमत की हिस्मत सो हरा सो हेरंव सो हिमाचल चल सो हर सो ॥ ४ ॥ मित्रकुलमंडन महीप रामजू की महा कीरति मही में मढ़ी मानस मृनाल सी । मान कवि मंजुल मनी सी मल्लिका सी मार ता मनिमहीपति सी मीनकेतुपाल सी ॥ मालतीलता सी मोतिया सी जुही माधवी सी माधव महोदधि सी मुदित मयंक सी। मघवा-मतंग ऐसी महिपा महीधर सी महादेवमंदिर सी मोतिन की

माल सी ॥ ५ ॥

(नायिकामेदु)

कंकन खनक पग नूपुर ठनक कटि किंकिनी झनक घनी घूम घह रात है। अंक की तचक परजंक की मचक लघु लंककी लचक हिये हार हहरात है ।। भनै कवि मान विपरीत की झलक दुलै बेसरि अलफ छवि छूटी छहरातहै । सुंदरि के कानन में पान यों तरफरात मानों पंचवान को निसान फहरात् है ॥ ६ ॥

छप्प्पै

ऊख पुच्छ को नाम नाम विन पत्र बृच्छ को ।
जहें गनती नहिं मिलै भच्छ को करत मच्छ को ॥
का विनती की कहत वृद्ध को नाम कंहावै ।
दृग सिंगार तहँ राखि नाम उज्ज्वल जस गावै ॥
भानुमित्र को गनत को मध्य अंक अभिलापही ।
कवि खुमान यदि छप्पका अर्थ सुद्ध नर भाषही ॥ १ ॥

१११ खंडन कवि
( भूषणदासग्रंथे )

दोहा- इहि विधि रस सिंगार में, सब रस रहे समाइ । १ इंद्र का हाथी ऐरावत ।२ कैलास पर्वत । ३ कामदेव।