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शिवसिंहसरोज


जैसे निर्मल ब्रह्म में, माया रूप रमाइ ॥ १ ॥
सुचि पुनि वीर, करुन है, अदभुत, हासहि जान ।
सु भयानक, बीभत्स है, रौद्र,शांत नव मान ॥ २ ॥

११२, खूबचंद कवि

मान दस लाख दियो दोहा हरिनाथ के पै हरिनाथ कोटि है ।
कलंक कवि कैहै को। वीरवर दै छ कोटि केशव कवित्तन में शिव–
राज हाथी दियो भूपन ते पैहै को ॥ छप्पे में छतीस लाख गंगै
खानखाना दियो याते दीन दूनौ दान ईंदर में ऐहै को। राजा
श्रीगंभीरसिंह बंद खूवचन्द के में विदा में दगा दई न दीन
कोऊ दैहै को॥१॥

११३. खानसुलतान कवि

चातक वजीर वीर वकसी समीर धीर पुरवाई महावीर केकिन
को मान है। दादुर दरोगा इन्द्रचाप इतमाम घटा जाली बगजाल
ठाो खानसुलतान है॥ गरजन अरज कदन जिन मनासिज जिन
सब जेर किये देस देस आन है। मेघ आमखास जामें दामिनी
तखत यह पावस न होइ पंचबान[१] को दिवान है॥१॥

११४ खेम कवि

पद

विलुलित कर पल्लव मृदु वेतु । हर्षित हुंकृत आषत धेनु ॥
कोटि मदन घुति स्याम सरीर । विपति कलपतरु जमुनातीर।
दच्छिन चरन चरन पर घेरे । वाम अंस भू कुंडल करे ।
वरुहचंदवन धातु मवाल । मनि मुक्ता गुंजाफल माल ॥
देखन चलहु खेम नंदलाल ।ललित त्रिभंगी मदन गुपाल॥१॥

११५खान कवि

माँगत पपीहा मुँह मैली है उरोजन के करिहाँई दूबरो दुखी न


  1. कामदेव।