चकई बिछुरि मिली तू न मिली पीतम सों गंग कबि कहै एतो
कियो मान ठान री । अथये नखत ससि अथर्ई न तेरी रिस तू न पर–
सन परसन भयो भान री ।। तू न खोलो मुख खोलो कंज औ गुलाब
मुख चली सीरी बायु तू न चली भो बिहान री । राति सब घटी नाहीं।
करनी ना घटी तेरी दीपक मलीन ना मलीन तेरी मान री ॥ ६ ॥
वैरी मुरी भटको लिय तू तेहि का कहि गंगहि बारि मिस्यावौ । कामरखी है अनारपना सुमरू सकरे लहि यादि बतावै ॥ हालिम सागो चहै हरियार ही केलिघरी सोसुखीरहि ध्यावौ। कायथ कागदी आबिल वेत हैं लै घनियाँ तौ पिआजु लै आवौ ।।१॥
कंचनखचित भूमि पन्नन प्रकास चारु राजित अनूप ओप देखि– ये प्रभा भरै । भानुकुलकमल दिनेस सम सेस राम निमिबंस–कैरव सु सोम से सुधा झरै ॥ गंगाधर जुगल किसोर बर आसन पै तेज के मरीचिन के वोयम परा परै । रूप के सड़ाका मुखचंद्र से जलूस जाति छूटि कै छपाकर के ऊपर छरा परै ॥ १ ॥
राधिका के चरन विराजै चारु मानिक से मूंगा की फली सी भली आंगुरी सुभापै हैं । गदाधर कहै करीकर से जुगुल जानु छीन कटि केसरी सो बेस अभिलाषे हैं ॥ पान सो उंदर हेमकुंभ से उरोज वर वाहु-लतिका सी खाँसी कामतरूसाखै हैं । इंदु सो वदन कुरुविंद से अधर लाल कुंद से रदैन अरविंद सम आँखै हैं।।१॥ जैलौ जहूनुकन्यका कलानीधि कलानिकर जटिल जटान विच भाल छवि बंद पै। गदाधर कहै जौ लौं अश्विनीकुमार
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१ किरण । २ हाथी की सूंड़। ३-पेट । वे दाँत ।