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शिवसिंहसरोज


हनुमान नित गावै राम सुजस आनंद पै ।। जौलौ अलकेस वेस महिमा सुरेस सुरसरितासमेत सुर भूतल फनिंद पै । विज नृपनंद श्रीभवानी सिंह भूपमनि वखत वलंद तौलौ राजौ मसनंद पै।।२॥ सारो नाम कुलटा कलंकिनी पुकारि ब्रज चाहौ लोक कुलकानि साँच वीच गारो ना । गारो ना सनेह होत सिर्फता–करोरि विधि विधि को विधान हेरो मेरो कुछ चारो ना ॥ चारो ना चरत घास केहरी उपास परे धरनि गदाधर सों, नीकी नेक टारो ना । टारो नात नेही देह गेह को सनेह टूटै छूटै लोग सारो पै अहीर वा विसारो ना ॥ ३ ॥

१२१ गिरिधारी ब्राह्मण सात नपुर चैलवारे के (१ )

जमुना नहात हरि लीन्हो हरि गोपिन के चारु रंग रंग वारे चीर रूपरासी है । कहै गिरिधारी एकै धानी इरधानी ए आसमानी कुसुमानी कासनी प्रकासी है ॥ केसरिया काक़रेजी कंजई सुनौलै एकै चंपई वसंती एकै वैजनी विभासी है । एकै गुलेनार गुल– नारंगी गुलाबी एकै गहव अवीरी आव वासी औ गुलासी है ।। १ ॥ न्यारी होहु नीर ते तौ देहि चीर ऐसी सुनि न्यारी भंई नीरहू ते तीर में कढ़े कढ़े । कहै गिरिधारी देत कस न वसन स्याम रसना पिरानी हाहा विनती पढ़े पढ़े ॥ मीत जो मही के बीच नीच करि पात्रती तौ कौतुक दिखावती विनोदन बड़े बड़े । छीनि लेती अंवर पितंवर समेत अब . कान्ह वातै जू कदंच पे चढ़े चढ़े ॥ २ ॥ कदम की डाली चढी कूधौ वनमाली कोपि काली– दह भीतर वियोग वीज लै गयो । कहै गिरिधारी घाये नगर के नारी नर भई भीर भारी नीर नैनन ने च्वै गयों ॥ नंद नंदरानी अररानी परै पानी वीच ओकओक अरर ससोर विष हैं गयो । जमुना समान्यो आजु ब्रज को सतून हाय जसुमतिसून विन


१ बालू। २ बश ! ३ कैसे नहीं । ४ तमाशा । ५ घर घर ।६ स्तंभ।