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शिवसिंहसरोज


१२५. गदाधर कवि (२ )

ध्रूव की धरनि जैसी जैसी जैसी कीन्ही पहलाद तैसी करै कौन तहाँ वुद्धि हू धसाई कै । तारी सुनिनारी पतिरूप जो विगारी सक्र गीध उपकारी तरयो रावनै खंसाई कै ॥ तारिवो गदाधर तिहारो तहाँ जेते नाहीं तेते तरे निज पुन्य रावरी रसाई कै ॥ मोहूं अवै भाई भाई आपु की दसाई देखि पुरुप दलाई. तारे सधन कसाई कै १ ॥ १२६. गिरिधर बनारसी आर्थात् श्रीमहाधनाधीश बाबू गोपालचंद शाकाते हर्षचंद्र के पुत्र श्रीबाबू हरिश्चन्द्र जू के पिता (३ )

सोरह कला को चन्द पूरन मुखारविन्द सोरहू सिंगार किये सोरह बरस की । आभरन बारा सजी कनकवनक बारा वारहों चरन चुभे चोप कंजरस की ॥ आठौ चौक दन्तन के आठौ अंग हार हीरा आठहू वरांगना ते विधना सरस की । चारि खग चारि मृग चारी फल फूल चारि चारि भुज आारत निकाई या दरस की ॥ १ ।। रजोगुन रंगवारी जावक सुरंगवारी आंनद उमंग वारी खच्छ छवि छाकी है । सौतिगुन भंगवारी सखी सतरंगवारी नवल तरंगवारी अगंवारी ताकी है ॥ गिरिधर कहै सोहै संपुट सरोजवारी वसीकर मंत्रवारी यंत्रवारी बाँकी है । पिय–मन–वेड़ी अच्छ लच्छननिवेड़ी वेस उपमा न छेड़ी राजै एड़ी राधिका की है ॥ २ ॥ मानो अधगुंजैका से चंचुक चकोर चख चावुक चमक चीज विद्रुम तमाल के। चेटक के चिह्न कैधौ नाटक के मुन्न कैधौ हाटक के हुन्न देस दच्छिन के चाल के ॥ जति जराय मधि नायक अमोल मोल गोल गोल मोती मानो मनि हेमपाल के । आगुरी अनी की नीकी कनककनी की कैधौ कामिनी के नख कै


१ घुँघुची आधी ।२नेत्र ।