पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६१
शिवसिंहसरोज


नगीना काम लाल के ॥ ३ ॥ कंचन के पल्लव में छोभ के वठीक् मानो लिखयों है उचौटमैन विधिमोह सो भयो । सुधा को स्रवत मनिमानिक तसत सोहैं आंगुरी किरन ज्यो प्रभाकर उदै भयो । मेहंदी रचित नख कैधौ मैन पंच बान खरसान धरे सोनो पानी तिनको दयो । आँचर के ओट ते अचानक ही डीठि पयो तेरो हाथ देखे मन मेरो हाथ ते गयो ॥ ४ ॥ कंज की कली सी उपमान हूँ भली के सोहैं सुखपाथली के लाखि सौतिमति छरकी। को कचुग नीके पी के ही के मोहिवे को करी हेमकुम्भ काम करतूति निज कर की ॥ गिरिधर कहै कुच नीके कामिनी के इमि ता पै मुकनान माल छाजै छवि वर की। मानो सम्भु–सीस ते भगीरथ के साथ काज निकसी अपार जुग धार सुरैसरि की ॥ ५ ।। आजु अलवेली अलवेले संग रंगधाम रति विपरीत पूरी प्रीति सों करति है । उझकि उझकि झकि झकि लचकीलो लंक आतिही अंक प्यारे को भरति है ॥ गिरिधरदास उभै उरज उतंग सोहैं उपमा कहत वानी लाजहि धरति है । मानो दुइ तुंव राखि छाती के तरे तरुनि सुरत समुद्र वेप्रयास हि तरति है ॥ ६ ॥

( भारतीभूषण—अलंकारग्रन्थे )

दोहा — मोहन मन मानी सदा, वानी को करि ध्यान ।
अलंकार वर्णन करत, गिरिधरदास सुजान ॥ १ ॥
सुन्दर वरनन गन रचित, भारति–भूषन एहु ।
पढहुगुनहु सीखहु सुनहु) सतकवि सहित सनेहु ॥ २ ॥

१२७. गोपाल कवि प्राचीन

केहरी कल्यान मित्र ‘जीत जू के तेरे डर सुत तजि पति तजि
वैरिनी विहाल हैं । कटि लचकति मचफति कचभारन सो गिरे


१ उच्चाटन के मंत्र । २ चकई–चकवा। ३ गंगा । ४ कमर। ५ वेधड़क । ६ गोद । ७ दोनों ।