नगीना काम लाल के ॥ ३ ॥ कंचन के पल्लव में छोभ के वठीक्
मानो लिखयों है उचौटमैन विधिमोह सो भयो । सुधा को स्रवत
मनिमानिक तसत सोहैं आंगुरी किरन ज्यो प्रभाकर उदै भयो ।
मेहंदी रचित नख कैधौ मैन पंच बान खरसान धरे सोनो पानी
तिनको दयो । आँचर के ओट ते अचानक ही डीठि पयो तेरो
हाथ देखे मन मेरो हाथ ते गयो ॥ ४ ॥ कंज की कली सी
उपमान हूँ भली के सोहैं सुखपाथली के लाखि सौतिमति छरकी।
को कचुग नीके पी के ही के मोहिवे को करी हेमकुम्भ काम करतूति निज
कर की ॥ गिरिधर कहै कुच नीके कामिनी के इमि ता पै मुकनान
माल छाजै छवि वर की। मानो सम्भु–सीस ते भगीरथ के साथ
काज निकसी अपार जुग धार सुरैसरि की ॥ ५ ।। आजु अलवेली
अलवेले संग रंगधाम रति विपरीत पूरी प्रीति सों करति है ।
उझकि उझकि झकि झकि लचकीलो लंक आतिही अंक
प्यारे को भरति है ॥ गिरिधरदास उभै उरज उतंग सोहैं उपमा
कहत वानी लाजहि धरति है । मानो दुइ तुंव राखि छाती के तरे
तरुनि सुरत समुद्र वेप्रयास हि तरति है ॥ ६ ॥
( भारतीभूषण—अलंकारग्रन्थे )
दोहा — मोहन मन मानी सदा, वानी को करि ध्यान ।
अलंकार वर्णन करत, गिरिधरदास सुजान ॥ १ ॥
सुन्दर वरनन गन रचित, भारति–भूषन एहु ।
पढहुगुनहु सीखहु सुनहु) सतकवि सहित सनेहु ॥ २ ॥
१२७. गोपाल कवि प्राचीन
केहरी कल्यान मित्र ‘जीत जू के तेरे डर सुत तजि पति तजि
वैरिनी विहाल हैं । कटि लचकति मचफति कचभारन सो गिरे
१ उच्चाटन के मंत्र । २ चकई–चकवा। ३ गंगा । ४ कमर। ५ वेधड़क । ६ गोद । ७ दोनों ।