ऐ सुकजाल बोलत विसाल ते न भोगत मरूकै ये । धीर को धराती छाती कौन अवला की अब कोक के कला की कोकिला की सुनि कूकै ये । जलथलगंजन सरसरसभंजनसुमान की प्रभंजन प्रभंजन की झुकै ये ।३ ॥ गौन हद होन लागे सुखद सुभौन लागे पौन लागे विपद वियोगिन के हियरान । सुभग सवादिले सु भोजन लगन लागे जगन मनोज लागे जोगिन के जियरान ॥ कहत गुलाल बन फूलन पलास लागे सकल विलासन के समय सु नियरान । मान लागे मिटन अमान दिन आन लागे भान लागे तपन पान लागे पियरान ॥ ४ ॥
तूरत फूल कलीन नवीन गिरो मुंदरी को कहूँ नग मेरो । संग की हारी हेराइ गोपाल गई अलसाइ डेराइ अँधेरो ॥ साँसति सासु की जाइ सकौ न अहो छिन एक न गैयन फेरो। कुंजबिहारी तिहारी थली यह जात उज्यारी दया करि हेरो ।। १ ।।
प्रथम पढ़िव हरिचंद भूप छतसाल निवासह । विय पब्लिक पहलाद भूप जग तेल सुवासह ॥ गुन पढ़ी दानी राम भूप की कीर्ति सुहाई । नृप खुमान ढिग भानदास बहु काव्य सुनाई ॥ विक्रम महीप कवि मान पढ़ि सुजस साखिसाखिन बड़े । करुणानिधान रतनेस ढीग कवि गोपाल नितप्रति पढ़े ॥ १ ॥
१ तोड़नेवाली । २ वायु । ३ भानु = सूर्य । ७ ढूंढ़वाकर।