पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/८८

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शिवसिंहसरोज


भुलाई सुधि पान की | काम ने करेजा रेजा रेजा किये काटि कांदि कासो कहौ वेदन विकलताई प्रान की ॥ ग्वाल कवि पीरक न कोऊ अपनो है बीर धीरज धरौ मै विधि कौन कवितान की । हाइ परदा में चुरियान की खनक तैसी छनक छलान की झनक वि- छिवान की ॥ १ ॥ कारचोष कीमैति के परदा चमकदार चहूँघा लुनाई फैलि रही ज्योति ज्वाला मैं । फरस गलीचन के बीच मसनंद तापे मखमली गादी गोल गुलगुली गाला मैं ॥ ग्वाल– कवि आला सेजवंद सेज सुंदर पै आला में मसाला धरे गरम रसाला मैं । चिपटि लला ते चित्रसाला में सु बाला आलू सौतिन हुसाला दिये लपटि दुसाला मैं ॥ २ ॥

१३६४ गुनधुि कवि

जमुना समीर तीर भरै गई नीर बीर मीन मन मोद मोहि दपदि दूपेटि जात । फैले हैं सुकेस आसपास ते सुवेस लाख विरही भु जंग जानि आनि आनि मेटि जात ॥ भनै गुनसिंधु राजै कंजन स– रोज भरे सहसा समेटि माँझधार गरगेटि जात । जहाँ जहाँ कंज

रहैं दिन को प्रकास भरे मेंरो मुखचंद जानि संधूटी समेटि जात ॥ १ ॥

१४०. गोसाँई कवि

दोहा―सींग वड़ो डाँड़ो वड़ो, खर चरि रहे मौदाय । गोसाँई घूरा खरनै, रॉभत राख उड़ाय ॥ १ ॥ गोसाँई गहि जोतिये, नाकनि मोटी नाथ । आगे पगही खैचिये, पाछे पैनी हाथ ॥ २ ॥}}</poem>}}

१४१गणेश्श कबीश्वर बनारसी

चंद सम फैलो तेज प्रबल प्रचंड देखि दंड आरिंदबूद खंड खंड घावते । थाप उमराय देस देस के झराष आवै ताप की त– राप ड्यौढ़ी लाँघन न पावते ॥ भनत गनेस केते श्रदव दवे से

१ हमदर्द । २ बहुमूल्य । ३ बंद होजाते हैं । ४शत्रुओं के समूह ।