पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/९८

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{{rh||शिवसिंहसरोज|७९


देश वर्णन, अनुप्छंद
रस खानि पससछी वस्र गंध नदी सुभ ।
देस नग्र गाढ़ी खाई पटमाया विभूपित ॥
धमै कोट नदी दाया सुख सोभा विहंगम ।
राम कृष्ण महारन मध्य देस मनोहर ॥

सवैया

दीन सवै विधि सील सुभाव सुरूप सवै सुख ओढ़न दासन । हेम पतंग परे अस नाहैिं उदै रवि पंकज कोप प्रकासन ॥ घाम उड़ै रजनी गुरुदीन दिया दुति धूम धरै छवि पासन | मोहन भृंग तजे तुव अंग कहै जग चम्पकरद् सुबास न ॥ १ ॥

१६५, राजा गोपालशरण
पद

सोभित भामिनि मुकुलित केस । मानों संभु कंठ ते रिंगि कै ससि सँग मधु पीवत जनु सेस ॥ भृकुटि चाप मनमथ कर इहि विधि साजत प्रथम प्रवेस । ता मधि नयन विसाल चपल अति तीच्छन बान लरने पिय सेस ॥ नासा कीर अधर विद्रुमछवि हँसि बोलत मानों तड़ित लसेस । कंठ कपोल मृनाल भुजा कर कम– लन मानों इन्द्र धनेस ॥ कुच निसोत कटि छीन जंघ जुग कदलि वियत मनु उलटि धँसेस । गज गति चाल चलत गोहम दुति नृप गोपाल पिय सद बिसेस ॥ १ ॥

१६६. गोविंददास( ३ )
पद

आवत ललन पिया रंग-भीने ।सिथिल अंग डगमगत चर– नगति मोतिनहार उर चीने ॥ पारिजात-मन्दारमाल लपटात मधुप मधु पीने । गोविंद प्रभु पिय तहीं जाहु जहँ अधर दसन छत कीने ॥ १ ॥


१ भौंह । २ धनुष । ३ घाव ।