पृष्ठ:शिवा-बावनी.djvu/१३

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शिवा बावनी

•rma शिवा बावनों

  • भाषार्थ

भूषण कहते हैं कि जब बीरवर शिवाजी ने अपने घोड़े और हाथी सजा कर दिल्ली पर चढ़ाई करने को फ़ौज तैयार की, उस समय दिल्ली वाले भय के मारे अत्यन्त दुखो हुये। घबड़ाहट के मारे मुगलों की स्त्रियाँ विना चोली (कंचुकी) कुर्ते, पायजामें और जूतियाँ पहिने सुख-शैया छोड़ कर कड़ी धूप में भागने लगी । सुन्दर युवतियाँ, जिन्हें पति की बाहों में आने का अवसर नहीं हुश्रा था अर्थात् जो नव-विवाहिता थी, पेड़ों की छाया ढूँढने लगीं। उनके मुखों पर बालों को लटें ऐसी छूट रही थीं, मानों कमल पर भौरियाँ मडरा रही हों और भय के कारण उन के मुख को छटा मलिन हो रही थी। टिप्पणी यहां उपमा अलङ्कार है। दिलगीर (फारसी) दुखी । तिलक-नुरकी शब्द तिरलीक का अपभ्रश, एक प्रकार का ढोला और लम्बा कुर्ता । पगनियाँ-जूतियाँ । आलियाँ भ्रमरियाँ । लालियाँ-सुन्दरता । कत्ता की कराकन चकत्सा को कटक काटि, कीन्ही सिवराज बीर अकह कहानियाँ। भूषन भनत तिहुँ लोक में तिहारी धाक, दिल्ली औ बिलाइति सकल बिललानियाँ । आगरे अगारन है फाँदती कगारनवे, काँधती न बारन मुखन कुम्हलानियाँ।