पृष्ठ:शिवा-बावनी.djvu/१५

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शिवा बावनी

शिवा बावनी कंद मूल भोग करें कंद मूल भोग करें, तीन बेर खाती ते वै बीन बेर खाती हैं। भूषन सिथिल अंग भूखन सिथिल अंग, विजन डुलाती ते वै विजन डुलाती हैं। भूषन भनत सिवराज बीर तेरे त्रास, नगन जड़ाती ते वै नगन जड़ाती हैं ॥७॥ भावार्थ भूषण कहते हैं कि हे बोरवर शिवा जी, आपके भय के मारे जो मुग़ल घराने की स्त्रियाँ बड़े बड़े मकानों के भीतर परदे में रहती थीं, वे अब भयानक पहाड़ों में छिपी रहती हैं। जो बढ़िया मिठाई खाकर रहती थीं, वे अब कन्द और मूल अर्थात् पौधों की जड़ें खाकर दिन काट रही हैं। तीन तीन बार भोजन करने वाली बेर बीन बीन कर गुजारा कर रही हैं। सुकुमारता के कारण जिनके शरीर गहनों के भार से सिथिल पड़ जाते थे, अब वे भूख के मारे दुर्बल हो गयी हैं। जो पंखे झलती रहती थी, वे अब निर्जन जंगल में मारी मारी फिरती हैं और जो रवजटित गहने पहनती थीं वे बिना बस्त्र के जाड़े में काँप रही हैं। . टिप्पणी यहां यमक अलकार है। जहां एक ही शब्द पार पार आता है, किन्तु इसका अर्थ जुदा जुदा होता जाता है, वहां यमक अलङ्कार कहा जाता है। जैसे पहले 'मंदर से मकान का बोध होता है और दूसरे 'मंदर से पहाड़ का । यहां पर मंदर, कन्द मूल, वेर, भूषन, विजन और मगन ये शब्द दो दो प्रों में प्रयुक्त हुए हैं।