पृष्ठ:शिवा-बावनी.djvu/२०

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शिवा बावनी

शिवा बावनी तोरि तोरि आछे से पिछौरा सों निचोर मुख, .. कई सब कहाँ पानी मुकतों में पाती हैं ॥११॥ भावार्थ जिनका जीवन सुगन्ध पर ही निर्भर था, जिन का भोजन किसमिस आदि मेवे थे और चार के अंक के मध्य- भाग के समान, जिन को अत्यन्त पतली कमर थी, और जो सौन्दर्य में चन्द्रमा को भी लजाती थीं, ऐसी शत्रुओं की स्त्रियाँ हे वीरवर शिवा जी, श्राप के भय के मारे भागती चली जा रही हैं। चलते चलते उनके पैरों में छाले पड़ गये हैं और वे कन्द मूल खा कर ही दिन काट रही हैं । ऐसी तेज़ गरमी में, 'जैसी कभी सुनी भी नहीं गई, घे कोमल स्त्रियाँ प्यास के मारे कमल की कलियों की तरह कुम्हला रही हैं । बढ़िया चादर से मोतियाँ तोड़ कर मुहँ में निचोड़ती हुई कहती हैं कि इनमें पानी भी नहीं है! टिप्पणी कहां पानी मुकते में-अच्छे मोतियों का प्राव अथवा पानी प्रसिद्ध है। वास्तव में यह पानी व आब मोती के सौन्दर्य और चमक को कहते हैं। यहां तात्पर्य यह है, कि त्रियाँ इतनी प्यासी थीं कि भ्रम में पड़ कर वे मोतियों में वास्तविक जल ढूंढने लगों और उनमें जन्न न पाकर कहने लगी कि मोतियों में जो भाव या पानी का होना प्रसिद्ध है, वह इन में कहां है ? 'सांहि सरताज श्री सिपाहिन में पातसाह,

अचल सु सिन्धु के से जिनके सुभाव हैं।