पृष्ठ:शिवा-बावनी.djvu/२१

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शिवा बावनी

शिवाचावनी भूषन भनत परी शस्त्र रन सेवा, घाक काँपत रहत न गहत चित चाव हैं। अथह विमल जल कालिन्दी के तट केते, परे युद्ध विपति के मारे उमराब हैं। नाव भरि बेगम उतारै बाँदी डौंगा भरि, मक्का मिस साह उतरत दरियाव हैं ॥१२॥ भावार्थ भषण कहते हैं कि राजाओं में श्रेष्ठ तथा सूरशिरोमणि बादशाह भी, जिनकी गंभीरता अगाध समुद्र की नाई है. शिवाजी का आतंक सुन कर निरुत्साह हो डर के मारे काँपते रहते हैं। कई सरदार आफ़त के मारे अथाह और निर्मल यमुनाजी के किनारे छिपे हुए पड़े हैं। बादशाह अपनी बेगमों को किस्तियों में और दासियों को डोगियों में भर भर कर तीर्थस्थान मका जाने का बहाना कर के समुद्र पार करते हैं। टिप्पणी यहां पर्यायोक्ति अलंकार है। जो बात कहनी हो, उसे सीधी रीति से न कह कर कुछ घुमा फिरा कर कहने को पर्यायोक्ति कहते हैं, जैसे यहां भागते तो डर के मारे हैं, पर वहाना मक्का जाने का कर रहे हैं। सेवा-शिवानो। चाव=चाह, उत्साह । डोंगा-छोटी और भदी नाव । दरियाव-समुद्र। किबले की ठौर बाप बादसाह साहजहाँ, ताको कैद कियो मानो मक्के आगि लाई है।