पृष्ठ:शिवा-बावनी.djvu/२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१८
शिवा बावनी

सिवाचावी बड़ो भाई दारा वाको पकरि कै कैद कियो, मेहर नाहिं मां को जायो सगो भाई है। बन्धु तो मुराद वक्स बादि चूक करिबे को, • बीच दे कुरान खुदा की कसम खाई है। भूषन सुकवि कहै सुनो नवरंगजेब, एते काम कीन्हे तऊ पातसाही छाई है ॥१३॥ भावार्थ .हे औरंगजेब, सुनो, तुमने पूज्य पिता शाहजहाँ को कैद कर के घोर अनर्थ किया, मानो अपने तीर्थ स्थान मक्के को जला कर भस्म कर दिया है। एक ही पेट के सगे भाई दारा को पकड़ कर कैद करने में भी तुम्हें तनिक दया न आई। अपने भाई मुरादबल्स के साथ विश्वासघात न करने की तुमने व्यर्थ ही परमेश्वर की कसम खाई। इतने अनर्थ कर चुकने पर भी तुम्हारे मनमें बादशाही का घमंड है। टिप्पणी यहां उत्पेक्षा अलंकार है। जहां किसी उपमेय का कोई उपमान बुद्धि द्वारा कल्पित किया जाता है, वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इसके वाचक शब्द मनु, जनु, मानो, प्रायः आदि हैं। यहां, 'बाप को कैद करके मानो मक्के में आग लगा दी. उत्प्रेक्षा है। छन्द १३ और १४ के विषय में कहते हैं कि भूषण ने ये दोनों कवित्त बादशाह औरंगजेब से अभयदान खेकर उसीके सामने भरे दरबार में निर्भ- बता पूर्वक सुनाये थे।