पृष्ठ:शिवा-बावनी.djvu/२९

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शिवा बावनी

२५ ....... शिवा बावनी देवल गिरावते फिरावते निसान अली, ऐसे डबे राव राने सबी गये लवकी। गौरा गनपति श्राप औरन को देत ताप, आपनी ही बार सब मारि गये दबकी। पीरा पयगंबरा दिगंबरा दिखाई देत, सिद्ध की सिध्याई गई रही बात रब की। कासी हू की कला जाती मथुरा मसीत होती, सिवाजी न होतो तो सुनति होत सब की ॥१६॥ भावार्थ भूषण कहते हैं कि मुसल्मानों ने देवस्थान तोड़ कर गिरा दिये और अली के झंडे फहरा रहे हैं। सब राव राने डर कर भाग गये हैं। दूसरों को दंड देने वाले पार्वती और गणेश डर कर छिप गये हैं। पीर और पैगम्बर तथा औलिया दिखाई दे रहे हैं । सिद्ध लोगों की सिद्धता चली गई और सुसल्मानी मत की दुहाई फिर रही है। यदि शिवाजो न होते, तो काशी का प्रत्यक्ष प्रभाव चला जाता, मथुरा में मसजिदें बन जाती और हिन्दुओं को खतना कराना पड़ता। टिप्पणी . दिगम्बरी-इसका अर्थ किसी किसी टिप्पणीकार ने प्रभावशून्य शिखा है, अर्थात पीर पैगम्बर और सिंह सभी प्रभावशून्य वा निस्तेज हो गये थे मुसल्मानों के राज्य-कान में पोर पैगम्बरों का निस्तेज हो जाना असंगत मार पड़ता है 'दिगम्बरों से यहाँ 'मोलिया अर्थात मुसलमानी नग्न परमहंसों से तात्पर्य है, अथश 'दिगंबरा दिशा से सार्थ हो