पृष्ठ:शिवा-बावनी.djvu/४४

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शिवा बावनी

AvM शिषा बावनी mr.wimmmmmmmm भावार्थ भूषण कहते हैं कि हे महाराज शिवाजी, आप का प्रताप दक्षिण दिशा में ऐसा छा गया है कि बीजापुर और बिदनूर के शूरवीर धनुष पर बाण नहीं चढ़ाते हैं । मलावार की स्त्रियाँ सौभाग्य चिह्न छोड़कर अपने बाल भी नहीं बाँधती हैं। कोट के भीतर भली भांति रक्षित रहने पर भी शत्रुओं की स्त्रियों के गर्भ गिर जाते हैं। उनके लड़के लड़कियाँ डरते ही रहते हैं। चालकुंड, दलकुंड और गोलकुंडा के किले वालों के हृदय डर के मारे धड़कते रहते हैं । मधुरा (मदुरा) का राजा डरता रहता है और द्राविड़ लोग महाभय से छिपे रहते हैं । टिप्पणी यहां अनुप्रास अलङ्कार है । इसका लक्षण छन्द ६ में दिया गया है। यह छन्द छप्पय हैइसके प्रथम चार चरण काव्य ( २४ मात्रा का छन्द, जिसकी यति ११वी मात्रा पर होती है ) छन्द के और अंत के दो चरण उहाला छन्द ( २६ मात्रा का छन्द, जिसकी यति १३वी अथवा १५वीं मात्रा पर होती है) के होते हैं। संवत् १७३० में शिवाजी ने 'परनाले पर विजय लाभ कर के सारे करनाटक को दबा लिया था। इसी साल का वर्णन छन्द ३० और ३१ में किया गया है। माल-सौभाग्य । धम्मिल-बाल । गभ आर्भ । कोटे गरम्भ-कोट के भीतर । चिंजी चिंगा-चिरंजीव पुत्री और पुत्र । निनिड़-महा। दद (१) वर्तमान मदुरा, जो मदास प्रान्त में एक ज़िला है।