पृष्ठ:शिवा-बावनी.djvu/४९

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शिवा बावनी

MAHAurrfanne शिवा पावनी भावार्थ यह दारा की चढ़ाई नहीं है और न खजुवा की लड़ाई है। यह मोर सहबाल (शहबाज खां ) नामी सरदार का कैद कर क्षेना भी नहीं है। यह विश्वनाथ जी के मठ का गिरा देना, गोकुल में अड्डा जमा लेना तथा बोर सिंह देवनिर्मित केसव- राय के देहरे को मिट्टी में मिला देना भी नहीं है। बड़े बड़े किलों को जीत कर दुश्मनों को कतल करता तथा सालाना खिराज लेता हुआ शिवाजी पा रहा है। ऐ दिल्लीश्वर, (औरंगज़ेब) देखो दिल्ली अब डूबने वाली है अर्थात् सर्व- नाश होने वाला है। संभालते बने तो अब भी संभालो क्योंकि महा काल रूपी शिवाजी का धक्का आ लगा है। टिप्पणी यहां आक्षेपालंकार है। पहले कोई बात कह कर फिर उसका निषेध करना आक्षेप कहालाता है। यहां, 'दारा की न दौर. यह' आदि वाक्यों में औरंगज़ेब की वीरता कह कर पीछे से उसी को नीचा दिखाया है। जब शिवाजी के आतंक से ईरानी और पुर्तगाली राजा तथा बीजापुर और गोलकुण्डा उनको सालाना खिराज देने लगे थे, उसी समय का वर्णन कवि ने छन्द ३५, ३६, ३७ और ३८ में किया है। दौर-चढ़ाई। हासिल राज्यकर। गढ़न गंजाय गढ़ धरन सजाय करि, छाँड़े कत धरम दुवार दै भिखारी से। साहि के सपूत पूत बीर सिवराज सिंह, केते गढ़धारी किये बन बनचारी से।