पृष्ठ:शिवा-बावनी.djvu/५१

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शिवा बावनी

Avoria शिवा बावनी हर ज्यों अनंग पर, गरुड़ भुजंग पर, कौरव के अंग पर, पारथ ज्यों पेखिये। बाज ज्यों विहंग पर, सिंह ज्यों मतंग पर, म्लेच्छ चतुरंग पर, सिवराज देखिये ॥३७॥ भावार्थ भूषण कहते हैं, जैसे इन्द्र पर्वतों का, सूर्य अंधकार की राशि का और गणेश विघ्नों के समूह का नाश कर देते हैं। जैसे राम ने रावण को, भीम ने जरासन्ध को, अगस्त्य ने समुद्र को, शिव ने कामदेव को, गरुड़ ने सो को, और अजुन ने कौरवों के पक्ष को नष्ट कर दिया और जैसे बाज को देख कर पक्षी और सिंह से हाथी डरता रहता है, उसी प्रकार महाराजा शिवाजी मुसल्मानों की चतुरङ्गिणी सेना को छिन्न भिन्न कर देने वाले हैं। टिप्पणी यहां मालोपमालंकार है। जब तक एक उपमेय के बहुत से उपमान कहे जाते हैं, तव मालोपमालङ्कार होता है। यहां 'शिवाजी' उपमेय के 'मक्र, अर्क, लंबोदर' प्रादि कई उपनाम लिखे गये हैं। तम फैल-अन्धकार राशि। कंभज-घड़े के उत्पन्न अगस्त्य मुनि, जिन्होंने समुद्र के सारे जल को सोख लिया था। पारथ-पृथा के पुत्र अर्जुन; अनंग-कामदेव, जिसे शिवजी ने क्रोधित हो जला दिया था। वारिधि के कुंभ-भव, घन बन दावानल, तरुन तिमिर हू के किरन समाज हौ।