पृष्ठ:शिवा-बावनी.djvu/५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४८
शिवा बावनी

शिवा बावनी ................. an.niw.maa.nm. कंस के कन्हैया, कामधेनु हू के कंट काल, कैटभ' के कालिका, विहंगम के बाज हो॥ भूषन भनत जम जालिम' के सचीपति, पन्नग के कुल के प्रवल पच्छिराज हो । रावन के राम, कार्तबीज' के परसुराम, दिल्लीपति दिग्गज के सेर सिवराज हो ॥३८॥ भावार्थ भूषण कहते हैं, यदि औरंगज़ेब समुद्र है, तो आप उसे सोख लेने वाले अगस्त्य है, यदि वह बड़ा भारी जंगल है, तो माप उसे भस्म कर देने वाले दावाग्नि है। यदि वह घोर अंध- कार है, तो आप उसे नाश करने वाले सूर्य के किरण-समूह हैं, यदि वह कंस है तो आप उसके संहार-कर्ता कृष्ण हैं, यदि वह कामधेनु है, तो आप उसके लिये कण्टकाकीर्ण स्थान हैं, यदि वह कैटभासुर है, तो आप काली हैं, यदि वह पक्षी है, तो आप बाज हैं, यदि वह संसार पर अत्याचार करने वाला वृत्रा. सुर है, तो आप इन्द्र हैं, यदि वह सर्प है, तो आप उसे भक्षण करने वाले प्रबल गरुड़ हैं, यदि वह रावण है, तो श्राप राम हैं, और यदि वह सहस्रबाहु अर्जुन है, तो आप उसके लिये परशुराम के अवतार हैं । हे महाराज शिवाजी, दिल्लीश्वर औरंगजेब रूपी हाथी के लिये श्राप सिंह के समान हैं। टिप्पणी यहां सम अभेद रूपक अलङ्कार है-इसका लक्षण छन्द १८ में दिया गया है।