पृष्ठ:शिवा-बावनी.djvu/५३

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शिवा बावनी

शिवा बावनी (१) एक महा बलवान राक्षस, जिसे काली ने मारा था। (२) यम के ऐसा जुल्म करनेवाला त्रासुर नाम का रापस, मिसे इन्द्र ने दधीचि के अस्थि-निर्मित वज़ से मारा था। (३) कार्तवीर्य, हैहय वंशी सहसंवाहु अर्जुन का नाम है। इसने परशुराम के पिता जमदग्नि को निरपराध मार डाला था। इसीका बदला चुकाने को परशुराम ने इसे और इसके वंशवालों का इकोस बार संहार किया। दरपर दौर करि नगर उजारि डारि, कटक कटायो कोटि दुजन दरष की। जाहरि जहान जंग जालिम है जोरावर, चले न कळूक अव एक राजा रब की। सिवराज तेरे त्रास दिल्ली भयो भुवकंप, ____थर थर काँपति बिलाइति अरब की। हालत दहिल जात कावुल कंधार बीर, रोस करि काढ़े समसेर ज्यों गरष की ॥३६॥ भावार्थ हे महाराज शिवा जी, आपने अपनी सेना के बल से दुष्टों के धन से एकत्रित सेना को काट डाला है, और उनके बसाये हुए शहर उजाड़ दिये हैं। आप रणभूमि में भयंकर वीरोचित प्रताप दिखानेवाले है। अब, संसार में आप सरीखे बलवान के भागे किसी राष राजा की नहीं चल सकती है आपके डर