पृष्ठ:शिवा-बावनी.djvu/५४

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शिवा बावनी

.- ..n... ... .. ५० शिवा बावनी के मारे दिल्ली में भूडोल सा होता रहता है और अरब की बादशाही भी थर थर कांपती रहती है। हे वीरवर, जब आप गुस्सा कर म्यान से तलवार खींचते हैं, तब काबुल और कन्धार हिल कर कांप उठते हैं। टिप्पणी यहां अतिशयोक्ति अलकार है । जहां किसी व्यक्ति अथवा वस्तु की योग्यता उचित मात्रा में अधिक कह दी जाती है। वहां अतिशयोक्ति अल- शार होता है। यहां शिवा जी की वीरता से संसार भर का कांपना बतला कर अतिशयोक्ति कर दी गई है। दरवरदन के बल से । दुजन दरब-दुर्जनां की दव्य अर्थात धन । रव-राव अथवा रव अर्थात एक खुदा को मानने वाले मुसलमान । 'सिवा की बड़ाई औ हमारी लघुताई क्यों, ___ कहत बार बार' कहि पाससाह गरजा। सुनिये 'खुमान हरि तुरुक गुमान महि, देवन जेवायो' कवि भूषन यों अरजा ॥ तुम वाकों पाय के जरूर रन छोरो वह, रावरे बजीर छोरि देत करि परजा । मालुम तिहारो होत याहि में निबेरो रन, कायर सो कायर औ सरजा सो सरजा ॥४०॥ भावार्थ औरंगज़ेब ने कविवर भूषण से पूछा कि 'तू शिवा जी की तारीफ और हमारी बुराई हमेशा क्यों किया करता है ?" इस