पृष्ठ:शिवा-बावनी.djvu/६३

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शिवा बावनी

....... .. शिवा पावनी विष जाल ज्वाल मुखी लवलीन होत, जिन झारन चिकारि मद दिग्गज उगलि गो॥ कीन्हों जिन पान पयपान सो जहान सब, ___कोल हू उछलि जल सिन्धु खलभलि गो। खग्ग खगराज महाराज सिवराज जू को, अखिल भुजंग दल मुगल निगलि गो॥४८॥ भावार्थ जिस मुग़ल-सेना रूपी महा सर्प के फन की फुसकार से बड़े बड़े पहाड़ भी उड़ जाते थे, जिसके भार से पृथ्वी धारण करनेवाला कठोर कच्छप कमल की तरह छितर बितर हो जाता था, जिसके घोर विष रूपी भग्नि की ज्वा- लाओं से दिशाओं में रहनेवाले बड़े बड़े हाथी चिकार खा कर मद हीन हो जाते थे, जिसने समस्त संसार को दूध की नाई पी लिया था, तथा जिसके प्रताप के मारे पाताल में रहने वाले बाराह के उछलने से समुद्र का पानी खौलने लगता था, उसी महा-सर्प को महाराजा शिवा जी का खत-कपी गरुड सहज ही निगल गया। टिप्पणी फुतकार ( फुत्कार ) फुसकार । बिदलिगो दलित हो गया। उगति गोनिकाल दिया, रहित हो गया । खग्ग-स। राखी हिन्दुवानी हिन्दुवान को तिलक राख्यो, . अस्मृति पुरान राखे बेद विषि मुनी मैं।