पृष्ठ:शिवा-बावनी.djvu/६४

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६०
शिवा बावनी

६० शिवा बावनी राखी रजपूती रजधानी राखी राजन की, घरा में धरम राख्यो राख्यो गुन गुनी में ॥ भूपन सुकवि जीति हद्द मरहट्टन की, देस देस कीरति बखानी तब सुनी मैं । साहि के सपूत सिवराज, समसेर तेरी, दिल्ली दल दावि कै दिवाल राखी दुनी मैं ॥४६॥ भावार्थ हे शाह जो के सुपुत्र महाराज शिवा जो, आपको तलवार ने हिन्दू-पन, उनका तिलक ( चन्दन ), म्मृति, पुराण तथा वैदिक धर्म की रक्षा की है; राजपूतों की रजपूती (क्षत्रियत्व), राजानी को राजधानियां, पृथ्वी पर धर्म तथा गुणियों में गुण आपकी तलवार से ही सुरक्षित रह सके हैं। अन्य राज्यों को जीत जीत कर मरहट्ठों ने जो यश कमाया है, वह सब आपका ही प्रताप है। आपकी तलवार ने ही दिल्ली की बादशाही सेना को पराजित कर संसार में मर्यादा (धर्म) स्थापित की है। टिप्पणी यहां पदार्थात दीपक अलंकार है । जहां शब्द तथा अर्थ दोनों बार गर दोहराये जाते हैं, वहांपदार्थास्त दीपक मलङ्ककार होता है। यहां 'राखी' शब्द तथा सीके अर्थ की कई बार श्राष्टति की गई है। अस्पति (एति) धर्मशास्त्र सम्बन्धी ग्रन्थ, जो मुख्यः १६ है। यहां बन्द-पूर्ति के लिए 'स्मति के आदि में 'अ' जोड़ दिया गया है। दिवाल- हर मर्यादा, धर्म।